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Tuesday, May 25, 2010

10 करोड़ कण्ठां रमती मां भाषा राजस्थानी

10 करोड़ कण्ठां रमती मां भाषा राजस्थानी
डॉ कैलाश जी मण्ड्रेला राजस्थान के प्रसिद्व कवि इनके द्वारा रचित कविता
हां दोस्तो  राजस्थान का रहने वाला हूं सबसे पहले अपनी भाषा की बात करना चाहुगां और जितना हो सके अपनी भाषा के बारे में लिखना और सुनना चाहुंगा।
पिछले वर्ष  दिसम्बर 2009 में झुन्झुनूं जिले के बस्बे चिड़ावा में एक विशाल 1008 कुण्डिय यज्ञ का आयोजन सेठ सहुकारो द्वारा करवाया गया था उसमें 31 दिसम्बर को एक कवि सम्मेलन रखा गया था उस कवि सम्मेलन में राजस्थान के कई कवियों को बुलाया गया था सभी ने किसी ने हास्य किसी ने व्यग किसी ने वीर रस की कविताएं सुनाई। सौभग्य से मुझे भी उनकी कविताए सुनने का मोका मिला दोस्तो मैने इतना आन्नद कभी प्रप्त नहीं किया होगा जितना उन कविताओ को सुनकर किया तिन घण्टे चला यह कार्यक्रम पता नहीं कब तीन घण्टे बीत गये। उस प्रोग्राम में सुनी एक कविता जो में रिकॉर्ड करके लाया था मुझे बहुत ही अच्छी लगी। शायद आपको भी अच्छी लगेगी। ऐसी आशा है । यह कविता लिखी है राजस्थानी के प्रसिद्व कवि कैलाष जी मण्ड्रेला जो राजस्थान के निवासी है और ज्यादतर राजस्थानी भाषा की कविताएं करते है। उन्हांेन बताया कि ‘‘भारत में 10 करोड़ लोग राजस्थानी बोलते है आज भी वो भाशा संवेधानिक मान्यता के लिए तरस रही है।’’ मैं मण्ड्रेला जी बहुत बहुत आभारी हूं कि उन्हानें चिड़ावा में आकर हमें यह कविता सुनाई और राजस्थानी भाषा के प्रति उनके रवैये को भी मैं प्रणाम करता हूं।
    हां दोस्तो उनका कहना सही जिस भाषा को 10 करोड़ लोग बोल रहे हैं वो भाषा आज संवेधानिक भाषा की मान्यता प्राप्त नहीं कर पाई हैं राजस्थानी भाषा के लिए अपनी मातृ भाषा के लिए उनकी ये चार पक्तिया मेरा और वहां बैठे तमाम कई हजारों श्रोताओं का मन भाव विभोर कर गई
डॉ कैलाश जी मण्ड्रेला राजस्थान के प्रसिद्व कवि हैं

‘‘ णगिण कवियां जिणं री किरत रचनावां मांई बखाणी है
और जिणं रो इतिहास अनुठो है गाथावां घणी पुराणी है
और जिणं रा शब्दां री बणगठ अर ताकतड़ी किण सूं छानी है
सूणता ही नाचे मारूड़ी गरमावे जोश जवानी है
जिसूं पहचाने सब म्हाने आपांरी खास निशानी है
वा 10 करोड़ कण्ठां रमती मां भाषा राजस्थानी है।’’
कठिन शब्दों के अर्थ नीचे है

अणगिण    -  बहुत सारे जिनकी कोई गिनती या निश्चित आंकड़ा न हो
जिणं          - जिसकी (यानि राजस्थानी भाषा की)
किरत          -  किर्ती, यश
रचनावां    -  रचनाएं, कविताएं
मांई        -  के अन्दर, के भीतर
बखाणी        - सुनाई है, प्रचार करना
अनुठो        - विचित्र
गथावां        - कथाएं, कहानियां वार्ताएं
घणी        - बहुत ज्यादा
बणगठ        - बनावट
छानी        - छुपी हुई
जिसूं        - जिससे
म्हाने        - हमें
आपांरी        - अपनी
कण्ठा रमती    - गले के द्वारा बोली जाने वाली
 आगे दूसरे पोस्ट में इनकी कविता लिख रहा हूं ....
‘‘ तने कुण कहवै री काळी’’

1 comment:

  1. बहुत सुन्दर कविता है | आभार इस रचना के लिए | दूसरी रचना का इंतज़ार है |

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