भाम्बू गौत्र का इतिहास/और मेरे गांव की बसासत का इतिहास
(किस प्रकार से मेरा गांंव/ गोत्र विकसित हुए और जगह जगह बसासत करते करते मेरा गांव मालीगांव बसा ,बसासत का सफरनामा )
मैंने अपने भाम्बू गोत्र के इतिहास बारे
में कुछ जानकारियां इकट्ठी की है जो आपके सामने मय सबूत पेश (शेयर) कर
रहा हु इसमें अगर कोई त्रुटि रह गई हो तो क्षमा करना और सुधार हेतु मेरे
नम्बर 9829277798 पर व्हाट्सएप्प मय सबूत भेज सकते है उसे अपडेट कर दिया जाएगा
भाम्बू गोत्र की उत्तपत्ति उद्धभव ओर विकास (बसासत)
1 जानकारी
बही भाट(जागा) बडुवा, कमेडिया,आदि से प्राप्त
बही भाट(जागा) बडुवा, कमेडिया,आदि से प्राप्त
वंश:- चंद्र
(कुल 36 वंश बताए गए है जिनमें भाम्बू का वंश चन्द्र है)
तड़:- आनना (आण्णा)
(जाटों में चार तड़ होती है 1 ऐजा 2 केजा 3 जतूनलिया 4 (आण्णा )आनना भाम्बू आण्णा तड़ के जाट है)
गोत्र :-आत्री
माता अनुसुईया
नख :-तंवर
निकास :; हस्तनापुर दिल्ली से निकास
तंवर क्षत्रीय
1पहला गाँव हरियाणा में कुंजला खेड़ा बसाया
2बाद में तेजरासर गाँव,
3बराला,
4 लडेरा खेड़ा
यहां से जाकर हरिपुरा गाँव,भवानीपुर गाँव ,कुतकपुरा धीरासर गाँव भामासी गाँव बड़पालसर गाँव ,ढढार गाँव आदि गाँव बसाए
भाम्बू
ढुकिया(डूकिया),डोटासरा तीनो एक ही मा कि कोख़ से पैदा होने के कारण जात
(दूध)भाई माने गये है इसीलिए इनमें आजतक आपस मे शादी विवाह का रिश्ता नही
होता है
तंवर क्षत्रिय वंश के राजा बाघ सिंह था उसके 12
बेटा हुए उनमें से 9 वां बीटा बीरसेन हुवा जिनका विवाह पूनिया खेड़ा गाँव
की राजपाल जी पुत्री ओर हरसुख जी की पोती सदा बाई पुनणी ब्याही गई।
उसके तीन बेटे हुए 1भिवसिंह 2दोहट सिंह 3 देवीसिंह
जिन्होंने अपना धर्म (गोत्र) अपनाया विक्रमी सम्वत 1251 में कुतबुद्दीन बादशाह के राज के समय
दोहट सिंह जिनके डोटासरा जाट हुए
देवीसिंह जी के ढुकिया जाट हुए
(तीनो दुध भाई होने के कारण आज भी इनमें आपस मे शादी विवाह रिश्ता नही होता)
अतः जानकारी सामने आई भाम्बू गोत्र भीमसिंह जी ने चलाया जो 1251 में अस्तित्व में आया।
भीवसिंह जी की शादी असपाल जी गोदारा की लड़की तनसुख जी की पोती राजा गोदारी के साथ हुई थी
भिवसिंह जी के दो पुत्र हुए थे 1 कुंजल जी 2 सिहोजी
कुंजल जी की शादी पाला जी की बेटी और जेताराम जी की पोती राधा बाई सहारण के साथ हुई।
1251 में दोनों ने अपने पिता भिवसिंह की आज्ञा से हस्तिनापुर छोड़ा
कुंजल जी ने कुंजला खेडा गाव बसाया जहां के भाम्बू कुंजलिया भाम्बू कहलाये
सिहोजी ने सिंथलिया गाँव बसाया जहां के भाम्बू सिंथलिया भाम्बू कहलाये
यानी 1251 में ही भाम्बू दो भागों में बंट गए कुंजलिया ओर सिंथलिया
कुंजल जी ने गाँव कुंजला खेड़ा में गायों के चरने के लिए 100 बीघा जोहड़ा
(बणी) छोड़ा तथा गांव कुंजला खेड़ा में महादेव पार्वती का मंदिर बनवाया ओर
कुल देवी कुंजला माता के देवरा (मंदिर) चिनवाय(बनवाया) ओर पूजा पाठ करवाया
और ब्राह्मणों का दान दक्षिणा दिया बादशाह की नोकरी की तथा बादशाह ने खुश
होकर कुंजला खेडा का 12 हजार बीघा का पट्टा बनाकर दिया तब सम्वत1253 कुतबुद्दीन के राज
में इस खुसी में कुंजल जी ने बही बाट जागा दीनदयाल जी पांच रुपये ओर एक
ऊंट अनाज और पोशाख देकर बही में भी मंदिर देवरा ओर पट्टे की बाद दर्ज
करवाई।
कुंजल जी के बेटा देहट जी और बेटी हरखू बाई थी
देहट जी की शादी रामु जी की बेटी गजूजी की पोती हीरा बेनिवाल से हुई जिसके बेटा तेजराज व बेटी धापू,हेमी,सुखी हुई।
तेजराज जी शादी लादूराम जाखड़ जी बेटी धर्मा जाखड़ से हुई बेटे हुए मालसिंह,जसपाल सिंह,सुरपाल सिंह,ईशर सिंह बेटी हरबाई हुई
सुरपाल जी शादी जेसाजी की बेटी रुकमा ढाकी से हुई
बीटा गोपीनाथ ओर पहाड़ जी हुये
गोपीनाथ जी की शादी करमसिंह जी की बेटी धन्नी भाखर के साथ हुई बेटे अर्जुन ओर लोहट बेटी मणि हुई
ईशर जी की शादी करमसिंह की बेटी देबू बाई बेनीवाल से हुई
बेटा गोपाल,हरपाल,बेटी लिछमा,रुपा हुई। सम्वत 1260 में जागा बही भाट ओंकार जी थे
पटेल साहब तेजराज जी कवर ईशर जी ने सम्वत 1271 में तेजरासर गाँव बसाया अलीशाह बादशाह के राज में जागा चन्द्रसेन आया
गोपाल राम की शादी धीरा जी की बेटि रामा बाई कसवी से हुई जिनके बेटा नरपाल,करमचंद, बेटी उमरी बाई हुई
नरपाल जी की शादी रणसिंह जी की बेटी बदामी स्योराण से हुई और दूसरी शादी जगसिह जी की पारा महली से हुई
बेटा धरमसिंह,कालूसिंह,नानग सिंह,बाहड़ सिंह,चोखा राम,माडू जी,चुहड,लोहटजी ,देहड़,ठाकरसिह,गिदोजी,बणपाल,गिलो जी 12 बेटे हुये बेटी राही,रुकमा
नरपाल जी को कालूजी की शादी दयाली से हुई जिनके बेटा कीरतो जी और बछराज जी बेटी नाथी,कडीया हुई।
बछराज जी की शादी हैमाराम की बेटी गंगा पुनिया से हुई और दूसरी भिव जी की
रामा बाई बलोदी से हुई बेटा खेतो राम,हरका राम बेटी लीला,करमा बाई हुई
खेता राम जी की शादि सोलराम जी की बेटी हरिया खींचड़ बाई से हुई
सम्वत 1382 की साल में औरंगजेब बादशाह के राज में बही भाट जागा करनीराम था
संवत 1440 की साल में चौधरी ईशर जी ,कालूराम जी के साथ गोपाल जी हरपाल जी ने तेजरासर गाँव छोड़कर भोड़की गाँव आये वहां के मीणा जाती के लोगो से झगड़ा करके कुएं की बाबत पर ओर फिर गाँव भोड़की छोड़ा और फिर सम्वत 1452 में गाँव लडेरा खेड़ा बसाया जो वर्तमान गाँव नारनोद ओर अलीपुर के बीच एक बड़े टीले भर पर था लडेरा खेड़ा गाँव मे फिरोजशाह बादशाह के राज में 11 हजार बीघा जमीन नाम कराई ओर बसासत कर खेती करी जागा ओकर जी को ये सब बही में लिखवाया
चौधरी खेताराम राम जी के समय सम्वत 1507 मे बहलोल लोदी
के राज में आया जागा,संवत1511 में गंगाराम जी और बछराज जी ने सोने की
मुरका दी जागे को, संवत1535 में जागा आया गाय दान में दी , फिर सम्वत 1545
में आया लडेरा खेडा गाँव मे, ही चौधरी साजन राम जी घोड़ी दी दान में
सम्वत 1551 में ,चौधरी जीवन राम ने सवा मन अनाज दिया सम्वत 1576 की साल में लडेरा खेडा गाँव मे
खेताराम जी के बेटे मेवाराम (भिवाराम) की शादी स्यामा जी की बेटी रुकमा
देवी से हुई उसके बेटे साजन जी और सांगो जी हुये बेटी मीरा हुई। साजन जिनकी
शादी पालाराम जी की बेटी हेमी महली से हुई जिनसे बेटा जीवनराम ओर धीराराम
हुए
जीवनराम जी के सांगा जी की बेटी देबू बाई जाखड़ ब्याही गई
धीराराम जी के राजा श्योराण ब्याही गई जिनके बेटे कुम्भाराम ओर लादूराम हुए बेटि हरकु बाई हुई
कुम्भाराम जी की शादी अजाड़ी गाँव की राजू जी की बेटी केसी महली से हुई
लादूराम जी की शादी रामपाल जी की बेटी कमला बुडानिया से हुई
कुम्भाराम के बेटे कुंतल ओर पातल हुए
एक दिन सम्वत 1587
में लडेरा खेडा गाँव मे चौधरी कुम्भा राम जी की धर्म पत्नी केसी देवी को
बादशाह हुमायु की फ़ौज पकड़कर मुसलमान बनाने लगी धर्म परिवर्तन करने लगे और
साथ ले जाने लगी तब कुम्भा राम जी और लादूराम जी तथा बेटे कुंतल पातल ने
बादशाह की फ़ौज से लड़ाई करी गाँव के अन्य जाती के लोगो ने भी मदद की इस लड़ाई
में चौधरी कुम्भा राम जिनका स्वर्ग वास हो गया पर फिर भी लड़ाई में विजय
भाम्बूवो की हुई कई मुसलमानों को मार गिराया बादशाह की फ़ौज भाग खड़ी हुई ओर
विजय भाम्बू की हुई हुई ओर धर्म बचा । फिर चौधरी कुम्भा राम जी की
धर्मपत्नी केसी देवी सती हुई 1587 की साल बैसाख सुदी दूज के दिन
चौधरी लादूराम ने इस युद्ध की याद में ओर भाई व भतीजे कुंतल पातल की वीरता
तथा भाभी के सती होने की याद में जागा को 31 रुपया दो ऊंट सजावट सुधा
तलवार सुनहरी मुठ वाली दी अनाज ढाई मन दिया कामल ओर बेस मर्दानी पोशाख बही
भाट जागा दीनदयाल जी को भाम्बू बही में सम्वत 1590 में लिखवाया इसके बाद कुम्भा
राम जी के बड़े बेटे कुंतल ने लडेरा खेड़ा गाँव को छोड़ कर नारनोद गाँव जो आज
है बसाया ओर छोटे बेटे पातल ने अलीपुर गाँव जो आज है बसाया ओर
चौधरी
लादूराम जी ने मालीगांव गाँव बसाया
तीनो गाँव एक ही दिन बसे सम्वत 1638 में बसे थे मालुखा पठान के राज में बसे है ये तीनो गाँव।
फिर
लादूराम जी के लखमी चंद उनके रुडाराम ओर उनके कालू,धामा,जोधा ओर इस प्रकार
हमारा पूरा गांव यानी मेरे पूर्वज बने और बढ़ते गए जो आज 400 घरों की
बस्ती है यहां से कई लोग दूसरे गावो में भी जाकर बस जैसे भोड़की, चंदवा का बास, बुडानिया,जखोड़ा ,साखन ताल,आदि की जगह बसे।
नोट:-
ये जानकारी बही भाट जागा की बही से ली गई है फोटो भी साथ संलग्न है जिनमे ये साफ साफ लिखा है और साथ मे वीडियो का लिंक भी दिया हुवा है जिसमे वर्तमान जागा राव रूपसिंह इन जानकारी कों पढकर सुना रहा है।
इसमें कोई सुझाव हो तो आप आमंत्रित है कॉमेंट में लिखे अगर सही लगा तो अपडेट कर दिया जाएगा
इस सामग्री को चुराना, कही अन्यत्र लगाना अपराध है अगर कोई ऐसा करता ही तो उसके खिलाफ कॉपीराइट के तहत कार्यवाही की जाएगी
आज भाम्बू गोत्र एक स्वतंत्र गोत्र है जिसे आज भाम्बू,बाम्भू,बामू,बामूं,बांभू,भामु आदि कई नामों से बोलते और लिखते है
आगे की जानकारी आते ही अपडेट कर दी जायेगी ...
video link
https://youtu.be/EGg08HqS8c4
मै आपका अपना
सुरेन्द्र सिंह भाम्बू
Vpo मालीगांव
जिला झुन्झुनू राजस्थान
9829277798
आपके पढ़ने लायक यहां भी है।
संग्रणीय और ऐतिहासिक आलेख।
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