मानव जाति के शौकीन आधुनिक पूर्वज
दोस्तो नमस्कार काफी दिन बित गये कोई पोस्ट नहीं लिख सका कारण कि पहले तो खेत के काम में व्यस्त रहा निनाण वगैरह का कार्य था खेत में इसलिये उसको निपटाता रहा फिर बरसात शुरू हुई बसरात के कारण अस्त व्यस्त रहा फिर एक दिन 23 अगस्त को दोस्तो का फोन आया " कि 25 अगस्त को झुन्झुनूं से बस मां वैष्णो देवी(कटरा जम्मू) की यात्रा के लिये जा रही है हम भी चलें क्या? "मैने भी खुशी खुशी हां कर दी और दोस्तों के साथ चार दिन के यात्रा टयूर पर चला गया और 30 अगस्त को लोटा इसलिये इतने दिन तक कोई पोस्ट नहीं लिख सका अब भी 9 सितम्बर को मेरी टेट की परीक्षा है इसलिये समय की कमी के कारण कोई नई पोस्ट नहीं लिख पा रहा हूं लेकिन वादा करता हूं कि सम्पूर्ण यात्रा सचित्र वर्णन के पोस्ट 9 सितम्बर के बाद जरूर ही पोस्ट करूंगा।
आज सुबह से तेज बारिश हो रही है सो मौसम सुहाना,अच्छा लग रहा है तो पढ़ने में मन नहीं लग रहा था इसलिये यात्रा के दौरान खिचे गये फोटो देख रहा था तो सामने ये फोटो आयी और मौसम भी वैसा ही हो रखा था जिस दिन ये फोटो मां के दरबार त्रिकुट पर्वत पर खिची थी सौ मैने सोचा ये छोटी सी पोस्ट तो आपके साथ शेयर कर ही ली जाये बाकि यात्रा तो आपके साथ बाद में शैयर करेंगे।
वैसे मानव जाती के पूर्वज या यूं कहे हमारे पूर्वज इन बन्दरों का भी एक अलग अंदाज है। इनका जीने का एक विचित्र ही तरीका हैं इन्हे देखकर मस्तिष्क हजारो वर्ष पूर्व में चला जाता है जब हमारे पूर्वज भी बन्दर ही हुआ करते थे कितना आनन्द लिया करते थे अपनी इस उछल कूद से और आजकल तो ये बन्दर भी आधुनिकता के रंग में ऐसे रंग ये है कि क्या कहे समय के साथ साथ इन्हे भी आधुनिकरण भा गया है ये डरना भूल गये हे। और नकल में तो आप जानते ही है इनका कोई दुसरा बराबरी कर ही नहीं सकता नकलची तो ये आदतन ही है। सो जब हम वहां फोटो खिच रहे थे इन्हे भी शौक चढ़ आया फोटो खिचवाने को और आकर खड़े हो गये हमारे सामने अलग अलग मुद्रओं में और मुझसे भी रहा नहीं गया और दो चार फोटो तो निकाल ही ली इनकी इन आश्चर्य चकित करने वाली अदाओं की और जैसे हम चाय वगैरह पीते तो हमसे मांगने लगते और जब उन्हे दे देते तो हूबहू जैसे हम चाय पी रहे थे वैसे ही आराम से बैठकर उस चाय का आनन्द लेने लगते ये है ना आधुनिकता और हो भी क्यूं नहीं आखिर ये हमारे पूर्वज ही तो है, इन्हें भी है शौक फोटो खिचवाने का.चाय पीने का क्यों न हो आखीर मावन जाती के पूर्वज जो ठहरे
एक बन्दरी मां अपने बच्चे को स्तनपान कराते हुये उसे बहुत पयार से दुलारती है तो देखने में आश्चर्य के साथ साथ बहुत ही अच्छा लगता हैं और मन में विचार आता है इन्हीं से तो आज हम इस तरह सब कुछ सिख पाये है।उछल कुद करती हुई इनकी ये जिन्दगी वास्तव में बहुत ही अच्छी है। आपको इनकी ये अदाये कैसी लगी जरूर बताना।
इनकी ये छोटी छोटी हंसाने वाली सरारते राहगीरो को रूकने के लिये मजबूर कर ही देती हैं एक तो माता के दरबार का वो मनोहरम दृश्य वो घाटियां वो चोटिया वो हरियाली और फिर एक इनका ये एक डाल से दुसरी डाल एक तार से दुसरे तार पर चक्कर लगाती इनकी टोलिया पुरे रास्ते को मनभावन बना देती हैं खाने पीने के लिये तो इनके लिये वहां के पेड़ो पर लगे फल फ्रूट ही काफी है लेकिन शायद इन्हे तो मानव के हाथ से लेकर खाने में बहुत स्वाद आता है तभी पुरे रास्ते यात्रियों इर्द गिर्द चक्कर लगाते हैं इनका मन भी मनुष्य के बीना नहीं लगता हैं ये इनका आधुनिकरण ही तो है।
ये लो दोस्तो अब बारिश भी थम गई और पोस्ट भी पुरी हुई अब थोड़ी पढ़ई करते हैं 2-4 दिन बाद पेपर है बाकी की शुरू वात से सम्पूर्ण सचित्र यात्रा वृतांन्त 9 सितम्बर के बाद जरूर पोस्ट करूगां तब तक के लिये इजाज़त...

दोस्तो नमस्कार काफी दिन बित गये कोई पोस्ट नहीं लिख सका कारण कि पहले तो खेत के काम में व्यस्त रहा निनाण वगैरह का कार्य था खेत में इसलिये उसको निपटाता रहा फिर बरसात शुरू हुई बसरात के कारण अस्त व्यस्त रहा फिर एक दिन 23 अगस्त को दोस्तो का फोन आया " कि 25 अगस्त को झुन्झुनूं से बस मां वैष्णो देवी(कटरा जम्मू) की यात्रा के लिये जा रही है हम भी चलें क्या? "मैने भी खुशी खुशी हां कर दी और दोस्तों के साथ चार दिन के यात्रा टयूर पर चला गया और 30 अगस्त को लोटा इसलिये इतने दिन तक कोई पोस्ट नहीं लिख सका अब भी 9 सितम्बर को मेरी टेट की परीक्षा है इसलिये समय की कमी के कारण कोई नई पोस्ट नहीं लिख पा रहा हूं लेकिन वादा करता हूं कि सम्पूर्ण यात्रा सचित्र वर्णन के पोस्ट 9 सितम्बर के बाद जरूर ही पोस्ट करूंगा।

एक बन्दरी मां अपने बच्चे को स्तनपान कराते हुये उसे बहुत पयार से दुलारती है तो देखने में आश्चर्य के साथ साथ बहुत ही अच्छा लगता हैं और मन में विचार आता है इन्हीं से तो आज हम इस तरह सब कुछ सिख पाये है।उछल कुद करती हुई इनकी ये जिन्दगी वास्तव में बहुत ही अच्छी है। आपको इनकी ये अदाये कैसी लगी जरूर बताना।
इनकी ये छोटी छोटी हंसाने वाली सरारते राहगीरो को रूकने के लिये मजबूर कर ही देती हैं एक तो माता के दरबार का वो मनोहरम दृश्य वो घाटियां वो चोटिया वो हरियाली और फिर एक इनका ये एक डाल से दुसरी डाल एक तार से दुसरे तार पर चक्कर लगाती इनकी टोलिया पुरे रास्ते को मनभावन बना देती हैं खाने पीने के लिये तो इनके लिये वहां के पेड़ो पर लगे फल फ्रूट ही काफी है लेकिन शायद इन्हे तो मानव के हाथ से लेकर खाने में बहुत स्वाद आता है तभी पुरे रास्ते यात्रियों इर्द गिर्द चक्कर लगाते हैं इनका मन भी मनुष्य के बीना नहीं लगता हैं ये इनका आधुनिकरण ही तो है।
ये लो दोस्तो अब बारिश भी थम गई और पोस्ट भी पुरी हुई अब थोड़ी पढ़ई करते हैं 2-4 दिन बाद पेपर है बाकी की शुरू वात से सम्पूर्ण सचित्र यात्रा वृतांन्त 9 सितम्बर के बाद जरूर पोस्ट करूगां तब तक के लिये इजाज़त...
आपके पढ़ने लायक यहां भी है।

बढिया पोस्ट, अब आगे की यात्रा भी लिखो। पूर्वजों से तो मिलवा दिया। :)
ReplyDeleteबहुत बढ़िया सजीव चित्रण ..
ReplyDeleteati sundar chitr hai
ReplyDeleteअन्दाजे बयाँ काबिले तारीफ है। वर्तनी व अशुद्धियोँ पर ध्यान देँ।
ReplyDelete