सर्दी का मौसम है इन दिनों ठण्ड पड़ रही हैं यूं कहे की कपकपी वाली ठण्ड पड़ रही हैं गर्म कपड़ों से बहार निकला मानो खतरें को दावत देने के बराबर है। और उपर से ये घना कोहरा सुबह 11 बजे तक जाने का नाम ही नहीं लेता और शहरों की बजाय हमारे गाँव में इसका प्रकोप ज्यादा रहता है क्योंकि यहाँ पानी का फिराव ज्यादा रहता है
शहरों की बजाय हमारे गाँव में इसका प्रकोप ज्यादा रहता है क्योंकि यहाँ पानी का फिराव ज्यादा रहता है
क्योंकि गांवों में ज्यादतर कुओ से सिचाई होती है और सिंचाई में फुवारा वगैरह से पानी का बिखराव ज्यादा रहता है इसलिए गाँवों में धुंध कोहरा घना व ज्यादा देर तक रहता हैं सुबह सुबह बिस्तर से बहार निकलने का मन हीं नहीं करता है। पर क्या करें निकलना तो पड़ता है?
सबसे ज्यादा दिक्क्त इस सर्दी में बच्चों की है उन्हें एक तो स्कूल में जाना उसके लिए सुबह सुबह नहा धोकर तैयार होना/करना बेचारों के लिए एक आफत है यहीं हाल मेरे बेटे लक्ष्य का है बेचारा सुबह सबुह सर्दी को देखकर स्कलू जाने से मुह चुराने लगता है कहता है पापा आज की छुट्टी कर दो ना! पर छुट्टी भी कब तक करें स्कलू तो जाना ही पड़ता है
बेचारा मन मार कर रो धो कर हो जाता है तैयार... इसलिए कभी उसकी फोटो खिंचकर तो कभी किसी और किसी चिज का लालच देकर उसे रोज भेजना पड़ता है वैसे हमारे घर में देखें तो बसे पहले नहा धेकर अगर कोई तैयार होता है तो वह है लक्ष्य क्योकि उसकी स्कूल बस 9 बजे आ जाती है इसलिए उसे सुबह 8.15 बजे नहाना पड़ता है वो नन्ही सी जान और ये सर्दी और उपर से ये कोहरा वो स्कूल जाने का भूत... पर भई पढ़ना भी तो उसे ही है ....
मैं तो जब तक बिस्तर से ही नहीं निकल पाता हूं
आपके पढ़ने लायक यहां भी है।
शहरों की बजाय हमारे गाँव में इसका प्रकोप ज्यादा रहता है क्योंकि यहाँ पानी का फिराव ज्यादा रहता है
क्योंकि गांवों में ज्यादतर कुओ से सिचाई होती है और सिंचाई में फुवारा वगैरह से पानी का बिखराव ज्यादा रहता है इसलिए गाँवों में धुंध कोहरा घना व ज्यादा देर तक रहता हैं सुबह सुबह बिस्तर से बहार निकलने का मन हीं नहीं करता है। पर क्या करें निकलना तो पड़ता है?
सबसे ज्यादा दिक्क्त इस सर्दी में बच्चों की है उन्हें एक तो स्कूल में जाना उसके लिए सुबह सुबह नहा धोकर तैयार होना/करना बेचारों के लिए एक आफत है यहीं हाल मेरे बेटे लक्ष्य का है बेचारा सुबह सबुह सर्दी को देखकर स्कलू जाने से मुह चुराने लगता है कहता है पापा आज की छुट्टी कर दो ना! पर छुट्टी भी कब तक करें स्कलू तो जाना ही पड़ता है
बेचारा मन मार कर रो धो कर हो जाता है तैयार... इसलिए कभी उसकी फोटो खिंचकर तो कभी किसी और किसी चिज का लालच देकर उसे रोज भेजना पड़ता है वैसे हमारे घर में देखें तो बसे पहले नहा धेकर अगर कोई तैयार होता है तो वह है लक्ष्य क्योकि उसकी स्कूल बस 9 बजे आ जाती है इसलिए उसे सुबह 8.15 बजे नहाना पड़ता है वो नन्ही सी जान और ये सर्दी और उपर से ये कोहरा वो स्कूल जाने का भूत... पर भई पढ़ना भी तो उसे ही है ....
मैं तो जब तक बिस्तर से ही नहीं निकल पाता हूं
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