साल की शुरूआत तो कुछ हद तक सही हुई पर बीच में क्या क्या हुआ उसकी मेरी नजर में थोड़ी- थोड़ी समीक्षा कर रहा हूं कहीं तेज गति से चलती रेल पट्टरी से उतरी कभी उरी हमला हुआ फिर सर्जिकल स्ट्राईक हुई कही आंतकवादी मारे गये कही उनके मनसुबे नाकामयाब हुऐ किसी की मांग का सिंदूर उजड़ा किसी की गोद सुनी हुई किसी का बेटा शहीद हुआ तो किसी का भाई वीर गति को प्राप्त हुआ झेलना पड़ा बेचारे भारत माता के जवानों को जो हमेशा से झेलते आ रहें है। इन राजनैताओं का क्या बीगड़ा वो ता फिर भी इनकी शहादत पर अपनी राजनिति की रोटिया सेकने लगें जैसे तैसे समय बीतता गया और काल चक्र चलता गया और फिर हुआ इस साल का सबसे बड़ दुःख दायी ऐलान 8 नवम्बर की वो रात सबको याद है उसे कोई नहीं भूल सकता नवम्बर का तो देव उठने की तैयारी के साथ शादी ब्याह सावे आदि की धूम मचने लगी पर इसी बीच मोदी बाबा ने कर दी सबको चैकाने वाली घोषणा और सबको लगा दिया नये धन्धे (लाईनों में) ये 50-52 दिन कैसे गुजरे ये या तो वो लोग बता सकते है जो लाईनों में खडै रहे या वो जो पैसे के लिए तरस गये या वो जिनके घर कोई शादी ब्याह जैसेा प्रोग्राम था वो ही बात है जाके पैर न फटे बिवाई वो क्या जाने पीर (पीड़ा) पराई । नवम्बर से लेकर दिसम्बर तक के दिन यू ही 500 और 1000 की कस्मकश में बीत गये। न किसी का धंधे सही तरीके से चले न कोई और काम लागों के चेजे भाठे का काम भी बन्द प्राय ही पड़ गया ।
और आज साल का आखरी दिन भी कैसा गुजरेगा लोग ये भी मोदी पर ही निर्भर करते है। लोग 31 दिसम्बर की पार्टी को भूल कर आज 7 बजे उनकी अगली घोषणा पर को सूनने के लिए ही टीवी के आगे चिपके रहें गें क्या पता क्या नई घोषणा कर दे कहि फिर से लाईन में ...... नही..... नहीं...... सुनकर ही रोंगटे खड़े हो जाते है।
इसलिए पार्टी की तरफ से ध्यान हटकर आज भी उनकी तरफ ही ध्यान है इसे उनका डर कहें या उनके प्रशंसक कहे ये तो आप ही अंदाज लगा सकते है। इसे जन तंत्र कहे या तानाशाह राजतंत्र ये फैसला भी मैं आप पर ही छोडता हूं और रही सही कसर आखिर में यूपी में पूरी हो गई बेटा बाप का बागी बन बैठा और बात ने बेटे को पार्टी से ही निकाल दिया एक मुख्यमंत्री को पार्टी से उसका ही बाप निष्कासित कर रहा हैं वाह रे राजनिति तुझे सलाम हैं ऐसे देश में क्या अच्छे दिन आ सकते है। मुझे तो नही लगता और आपको ? ऐसे तो इतिहास में पढ़ा और सुना था कि भाई भाई का दुश्मन बन बैठा और बेटा बाप का बागी हो गया और भाई ने भाई का कत्ल कर दिया वो भी कुर्सी के लिए पर वो बात समझ में आती है कि वो जा राजतंत्र था तानाशाह शासन था पर आज तो कहा जाने वाला जनतंत्र है आज भी ये सब क्यो ? जनतंत्र में तो सारा खेल जनता के हाथ में है किर भी ये लड़ाई क्यो मतलब साफ है आज भी जनतंत्र सिर्फ कहने मात्र के लिए है जनता पंगू बनी हुई हैं और डोर आज भी बप बेटो की मुट्ठी मे है। या फिर मोदी जी की घोषणा में
किसका काला धन सफैद हुआ, कितना काला धन आया, कितना नष्ट हुआ किनके पास आज भी नये नोट जमा है और कौन आज भी दर दर की ठोकरे खाने के लिए बेबस है। कीसकी सफाई से ये काला धन सफेद हुआ कौन कौन से बैंको के कर्मचारीयों द्वारा ये नया धन किन किन को जमा करवाया गया क्या ये कर्मचारी भारत सरकार के अधीन नहीं आते ? तो फिर क्या कार्यवाही हुई उनके खिलाफ ...?? इन सब पर कितनी भी चर्चा की जा सकती है पर आज साल का आखिरी दिन है सो ज्यादा न लिखते हुए आप पर ही छोडता हूं
आप सब बुद्धिजीवी है आप सब जानते हैं मैने तो साल भर की समिक्षा की बाकि आप सब जानते है क्या सही क्या गलत है ?
आज के लिए इतना ही मिलते है नई साल में इसलिए नई साल की अग्रीम शुभकामनाएं राम राम
और आज साल का आखरी दिन भी कैसा गुजरेगा लोग ये भी मोदी पर ही निर्भर करते है। लोग 31 दिसम्बर की पार्टी को भूल कर आज 7 बजे उनकी अगली घोषणा पर को सूनने के लिए ही टीवी के आगे चिपके रहें गें क्या पता क्या नई घोषणा कर दे कहि फिर से लाईन में ...... नही..... नहीं...... सुनकर ही रोंगटे खड़े हो जाते है।
इसलिए पार्टी की तरफ से ध्यान हटकर आज भी उनकी तरफ ही ध्यान है इसे उनका डर कहें या उनके प्रशंसक कहे ये तो आप ही अंदाज लगा सकते है। इसे जन तंत्र कहे या तानाशाह राजतंत्र ये फैसला भी मैं आप पर ही छोडता हूं और रही सही कसर आखिर में यूपी में पूरी हो गई बेटा बाप का बागी बन बैठा और बात ने बेटे को पार्टी से ही निकाल दिया एक मुख्यमंत्री को पार्टी से उसका ही बाप निष्कासित कर रहा हैं वाह रे राजनिति तुझे सलाम हैं ऐसे देश में क्या अच्छे दिन आ सकते है। मुझे तो नही लगता और आपको ? ऐसे तो इतिहास में पढ़ा और सुना था कि भाई भाई का दुश्मन बन बैठा और बेटा बाप का बागी हो गया और भाई ने भाई का कत्ल कर दिया वो भी कुर्सी के लिए पर वो बात समझ में आती है कि वो जा राजतंत्र था तानाशाह शासन था पर आज तो कहा जाने वाला जनतंत्र है आज भी ये सब क्यो ? जनतंत्र में तो सारा खेल जनता के हाथ में है किर भी ये लड़ाई क्यो मतलब साफ है आज भी जनतंत्र सिर्फ कहने मात्र के लिए है जनता पंगू बनी हुई हैं और डोर आज भी बप बेटो की मुट्ठी मे है। या फिर मोदी जी की घोषणा में
किसका काला धन सफैद हुआ, कितना काला धन आया, कितना नष्ट हुआ किनके पास आज भी नये नोट जमा है और कौन आज भी दर दर की ठोकरे खाने के लिए बेबस है। कीसकी सफाई से ये काला धन सफेद हुआ कौन कौन से बैंको के कर्मचारीयों द्वारा ये नया धन किन किन को जमा करवाया गया क्या ये कर्मचारी भारत सरकार के अधीन नहीं आते ? तो फिर क्या कार्यवाही हुई उनके खिलाफ ...?? इन सब पर कितनी भी चर्चा की जा सकती है पर आज साल का आखिरी दिन है सो ज्यादा न लिखते हुए आप पर ही छोडता हूं
आप सब बुद्धिजीवी है आप सब जानते हैं मैने तो साल भर की समिक्षा की बाकि आप सब जानते है क्या सही क्या गलत है ?
आज के लिए इतना ही मिलते है नई साल में इसलिए नई साल की अग्रीम शुभकामनाएं राम राम
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