
झुन्झुनूं पहुचे तो बस (श्री भवानी ट्रेवल्स) निर्देशित स्थान पर पहले से ही खड़ी मिली वहां बस के चालक हमारे ही दोस्त राजवीर से मुलाकात हुई और इंधर उधर की बाते होने लगी। कुछ ही देर में यात्रा पर जाने वाले यात्री आने शुरू हो गये बस मालिक ने आकर सबको पूर्व बुकिंग मुताबिक अपनी अपनी सिट व स्लीपर बताई हमने 2 सिट व एक स्लीपर बुक करवाया ताकि आपस में बदल बदल कर सफर तय कर सके और किसी को कोई परेशानी भी ना हो और किराया भी मंहगा न पड़े 1 सिट का किराया 1200 रूपये था और 1 स्लीपर का किराया 2200 रूपये था आने जाने का और यह तय हुआ था कि खाना खर्चा सब अपने अपने हिसाब से ही करेगें

उसके बाद वहां से फिर अमृत सर के लिये यात्रा शुरू हुई, वहां से हम लगभग 7.30 बजे चले और अमृतसर वहां से लगभग 125 किमी दूर था अतः हम फिर चारो तरफ की हरियाली और चावल की फसल की लहलाती फसल का आनन्द लेते हुये चलने लगें और लगभग 10 बजे हम अमृतसर पहुच गये वहा पर बस को पार्क किया गया और सभी यात्रियों को स्वर्ण मन्दिर और जलिया वाला बाग के दर्शन करके लगभग 1 बजे तक वापस बस के पास आ जाने का निर्देश दिया गया वहा से हम अपनी मित्र मण्डली के साथ दर्शनों के लिये चल दिये
बगड़ से गइ हमारी मित्र मण्डली
हमने सबसे पहले जलिया वाला बाग देखने का मन बनाया और प्रवेश कर गये बांग में, और वहां देखा हाल आपके सामने है।
पहला दर्शन शहीद स्थल जलियां वाला बाग
वैसे आप सभी यहा के बारे में जानते है फिर भी छोटी सी जानकारी यहां के बारे में
बैसाखी के दिन 13 अप्रैल, 1919 को अमृतसर के जलियांवाला बाग में एक सभा रखी गई, जिसमें कुछ नेता भाषण देने वाले थे। शहर में कर्फ्यू लगा हुआ था, फिर भी इसमें सैंकड़ों लोग ऐसे भी थे, जो बैसाखी के मौके पर परिवार के साथ मेला देखने और शहर घूमने आए थे और सभा की खबर सुन कर वहां जा पहुंचे थे। जब नेता बाग में पड़ी रोड़ियों के ढेर पर खड़े हो कर भाषण दे रहे थे, तभी ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर 90 ब्रिटिश सैनिकों को लेकर वहां पहुँच गया। उन सब के हाथों में भरी हुई राइफलें थीं। नेताओं ने सैनिकों को देखा, तो उन्होंने वहां मौजूद लोगों से शांत बैठे रहने के लिए कहा।
सैनिकों ने बाग को घेर कर बिना कोई चेतावनी दिए निहत्थे लोगों पर गोलियाँ चलानी शुरु कर दीं। १० मिनट में कुल 1650 राउंड गोलियां चलाई गईं। जलियांवाला बाग उस समय मकानों के पीछे पड़ा एक खाली मैदान था। वहां तक जाने या बाहर निकलने के लिए केवल एक संकरा रास्ता था और चारों ओर मकान थे। भागने का कोई रास्ता नहीं था। कुछ लोग जान बचाने के लिए मैदान में मौजूद एकमात्र कुएं में कूद गए, पर देखते ही देखते वह कुआं भी लाशों से पट गया।
बाद को उस कुवें में से 120 लाशें निकाली गईं। शहर में कर्फ्यू लगा था जिससे घायलों को इलाज के लिए भी कहीं ले जाया नहीं जा सका। लोगों ने तड़प-तड़प कर वहीं दम तोड़ दिया। अमृतसर के डिप्टी कमिश्नर कार्यालय में 484 शहीदों की सूची है, जबकि जलियांवाला बाग में कुल 388 शहीदों की सूची है। ब्रिटिश राज के अभिलेख इस घटना में 200 लोगों के घायल होने और 379 लोगों के शहीद होने की बात स्वीकार करते है जिनमें से 337 पुरुष, 41 नाबालिग लड़के और एक 6-सप्ताह का बच्चा था। अनाधिकारिक आँकड़ों के अनुसार 1000 से अधिक लोग मारे गए और 2000 से अधिक घायल हुए।और इसका नतीजा 13 मार्च 1940 को उन्होंने लंदन के कैक्सटन हॉल में बम बलास्ट कर उन्होंने इस घटना के समय ब्रिटिश लेफ़्टिनेण्ट गवर्नर मायकल ओ डायर को गोली चला के मार डाला। ऊधमसिंह को 31 जुलाई 1940 को फाँसी पर चढ़ा दिया गया।
आज भी भारत अपने उन शहीदों की शहादत के प्रति कृतज्ञ है और इस दिन सभी शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करता है. उपरोक्त जानकारी विकिपीडिया से ली गई है।वेसे ये सब जानकारी वहां मिल रही किताबो और वहां पर अंकित भी की गई है।
वहां पर शहीद हुये हिन्दुस्तानियों का बाद में बनाया गया चित्र जो आज वहा बने हॉल में मौजुद है और इस हॉल में शहीदों के चित्र भी अंकित है।
वैस आजकल वहां काफी विकास हो रखा है वहां पर चलाई गई गोलियों के निशान आज भी मौजुद है जिन्हे काच की प्लेट व लोहे के तार लगाकर ढ़का गया है ताकि वो मिट न जावे और वहा पर स्मार्क भी बना हुआ है काफी पौधे बगीचा वगैरह और फ्वारे भी लगोय गये हैं जहा पर हमने फोटो भी खिचेऔर वीडियो भी बनाया है।
ये है अमर ज्योति जो उन अमर शहीदों की याद में हमेशा प्रज्वलित रहती है।
हमने भी यहां पर खड़े हाकर उन अमर शहीदों को श्रृद्धाजंलि दी और उन महान आत्माओं को नमन किया
यहा पर हमने फोटो खिचे और वीडियो भी बनाया, पुरे बाग में घुमकर वहां हुये नर-संहार के आज भी जवां निशानों को देखा वहां मौजुद शहीद कुऐ को भी देखा और वहा पर बनाये गये स्मार्क के पास खडे होकर फोटो खिचवाये ।
कार्य अब भी वहां पर चालू हैं और भी इस जगह को आकर्षक बनाया जा रहा है।
यहा के दर्शन के बाद हम स्वर्ण-मन्दिर देखने पहुचे
वहां का दृश्य तो वास्तव में अद्धभुत हैं
जिसका सचित्र वर्णन मैं अपनी अगली पोस्ट में करूंगा तब तक के लिये इजाजत...
आपके पढ़ने लायक यहां भी है।

बहुत सुन्दर यात्रा संस्मरण!
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