📚छोटे कांशी के रूप मे विख्यात बगङ की बेदह कड़वी हकीकत
बगङ।
यहां हर साल देशभर के सैकड़ों के युवाओं के ख्वाब हकीकत में बदलते हैं। कोई अध्यापक, डॉक्टर, इंजीनियर, फार्मीस्ट आदि बनता हैं। बगङ शहर मे पढ कर गये लोग आज उच्च पदों पर विराजमान है। वहीं दूसरी ओर बगङ का एक स्याह पहलू भी है। वो यह है कि यहां ऐसे बच्चों की भी कमी नहीं, जिनके 'ख्वाबों का फूल खिलने से पहले ही मुरझा रहा है।
इसकी वजह यहां पर सरकारी खर्चे पर पढऩे की सुविधा नहीं है। एक तरफ तो सरकार प्रत्येक ग्राम पंचायत मे आदर्श उच्च माध्यमिक विद्यालय खोल रही है तथा दूसरी ओर देश की आजादी के इतने सालों बाद भी बगङ नगर पालिका क्षेत्र होते हुए भी यहां सरकारी उच्च माध्यमिक विद्यालय का अभाव हैं।
इस कड़वी हकीकत का अंदाजा इससे सहज लगाया जा सकता है कि नगर पालिका क्षेत्र होते हुए भी विधार्थीयो के लिए दसवीं के बाद का सरकारी स्कूल नहीं है।
शहर छोड़ कर गांवों में जाते हैं पढऩे
दसवीं के बाद निजी स्कूल की फीस की व्यवस्था नहीं होने पर,पढ़ाई छोडऩे की नौबत आती है।
या फिर कक्षा 11-12 वीं मे सरकारी स्कूलों मे अध्ययन करने के लिए 7-8 किमी शहर से गांवो की ओर कासीमपुरा, लाम्बा जाना पडता हैं।
आजादी के इतने साल बाद भी नगरपालिका क्षेत्र होते हुए भी दसवीं के बाद आगे की पढ़ाई के लिए सरकारी स्कूल कस्बे में नहीं होना विडम्बना है। जनप्रतिनिधियों को इस दिशा में प्रयास करने चाहिए। साथ ही आमजन को सरकारी स्कूल के लिए आवाज उठानी चाहिए।
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