दोस्तो मैं अपने वादे के मुताबिक मण्ड्रेला जी की प्रसिद्ध कविता तनै कुण कहवै री काळी आपको लिख रहा हूं इस कविता में मण्ड्रेला जी ने इस समाज में कन्या भू्रण हत्या पर कुठरा घात किया है।और लड़की के रूप की कई उपमाये देकर समाज को बताना चाहा है कि लड़किया पहले भी और आज भी हमारे देश और समाज की आन और शान है। भारत में हुई विदुषियों का बखान करने के साथ -साथ आज समाज में लगातार बढ़ रहे लिंगानुपात को रोकने का संदेश दिया है तथा कन्या भ्रूण हत्या को समाज के लिए पाप अभिशाप बताया है। लड़की के जन्म को आज का समाज बोझ मानता है लेकिन कवि ने घर में लड़की के जन्म एक सौभाग्य बताया है।
दोस्तों आज से हम भी प्रण ले की कन्या भ्रूण हत्या को रोके और रोकने में सरकार समाज देश का साथ दे...
अगर कविता पंसद आये तो टिप्पणी जरूर दे।
‘‘ हे री तनै कुण कहवै री काळी, म्हारे घर की तूं दिवाली,
हे री तनै कुण कहवै री काळी,
म्हारे घर की तूं दिवाली,
हसंदे तो जाणे नी कमल निसरग्या,
गुम सुम होवे बाग माही फूल झड़ग्या,
गावेली उमग सूर शारदा रा भरग्या,
नाचे घर आंगणे तो देव सारा तरग्या,
परभाते मुण्डो देख्यो सारा काम सरग्या,
बेटी थारे जन्म सू जन्म सुधरग्या,
म्हारे हिरदा की खूंगाळी
तनै कुण कहवै री काळी,
म्हारे हिरदा की खूंगाळी .....
हे री तनै कुण कहवै री काळी,
म्हारे घर की तूं दिवाली,
हसंदे तो जाणे नी कमल निसरग्या,
गुम सुम होवे बाग माही फूल झड़ग्या,
गावेली उमग सूर शारदा रा भरग्या,
नाचे घर आंगणे तो देव सारा तरग्या,
परभाते मुण्डो देख्यो सारा काम सरग्या,
बेटी थारे जन्म सू जन्म सुधरग्या,
म्हारे हिरदा की खूंगाळी
तनै कुण कहवै री काळी,
म्हारे हिरदा की खूंगाळी .....
माथे री है रोळी, पोळी री तूं बन्धनवार है ,
कोयल है बाग री सावन फुआर है,
चान्दणी है आंगणे री, तूळसी री डार है,
मन की मछळी तूं, कली कचनार है,
हरिणी सी मोहनी, तूं चाले दूधार है ,
तूं भवानी माही दुर्गा रो अवतार है,
पूजा की है पावन थाळी,
तनै कुण कहवै री काळी,
पूजा की है पावन थाळी, तनै कुण .....
कोयल है बाग री सावन फुआर है,
चान्दणी है आंगणे री, तूळसी री डार है,
मन की मछळी तूं, कली कचनार है,
हरिणी सी मोहनी, तूं चाले दूधार है ,
तूं भवानी माही दुर्गा रो अवतार है,
पूजा की है पावन थाळी,
तनै कुण कहवै री काळी,
पूजा की है पावन थाळी, तनै कुण .....
काळा तो किशन हुया, काळा साळेगा्रम जी,
हुई काली माता, हुए काळे श्रीराम जी,
काळी घणी कस्तूरी रा मूंगा घणा दाम जी,
काळे भैरू नै तो करै जगत सलाम जी,
हीरा और कोयला में एक तत्व नाम जी,
काळे नेल्सन मण्ड्रेला नै नोबल ईनाम जी,
हेमा ज्यू घणी रूपाळी ,
तनै कुण कहवै री काळी,
हेमा ज्यू घणी रूपाळी , तनै कुण कहवै ......
हुई काली माता, हुए काळे श्रीराम जी,
काळी घणी कस्तूरी रा मूंगा घणा दाम जी,
काळे भैरू नै तो करै जगत सलाम जी,
हीरा और कोयला में एक तत्व नाम जी,
काळे नेल्सन मण्ड्रेला नै नोबल ईनाम जी,
हेमा ज्यू घणी रूपाळी ,
तनै कुण कहवै री काळी,
हेमा ज्यू घणी रूपाळी , तनै कुण कहवै ......
गारगी, सीता, सावित्री, मैत्री, गणुखान है,
पिटी उषा, कल्पना, बछेन्द्री सी उडान है,
इन्दिरा, सरोजनी किरण के समान हैं ,
प्रतिभा, सुनिता, रजिया सी सुल्तान हैं,
मीरा महादेवी थी, जबान लता सी जवान है,
पन्ना, पदमनी, राणी झासी सी महान हैं,
म्हारो मान बधाबा वाळी,
तनै कुण कहवै री काळी,
म्हारो मान बधाबा वाळी तनै कुण ....
बेटिया नै जो निचावे वो उजड़ समाज,
मारै भ्रूण बेटिया रा नर नहीं बाज है,
दायजा, तलाक सब खोटा ये रिवाज है,
दायजा, तलाक सब खोटा ये रिवाज है,
करै मार पीट जीव से घिनोना काज है,
बेटिया तो जीवण री सांची सरताज है,
बेटिया तो जीवण री सांची सरताज है,
एक बेटी दो कूळा री जग माही लाज है,
सत पथ री करे रूखाळी,
सत पथ री करे रूखाळी,
तैन कुण कहवै री काळी,
सत पथ री करे रूखाळी, तैन कुण....
म्हारो मान बधाबा वाळी,
तनै कुण कहवै री काळी,
काडू बानै मैं गाळी,
जो तनै कहवै री काळी।
म्हारो मान बधाबा वाळी,
तनै; कुण कहवै री काळी,
तनै कुण कहवै री काळी,
काडू बानै मैं गाळी,
जो तनै कहवै री काळी।
म्हारो मान बधाबा वाळी,
तनै; कुण कहवै री काळी,
कठिन शब्दों के अर्थ
निसरग्या - निकलना,उगना
बाग माही - बाग के अन्दर
गावेली - गाना
शारदा - मां सरस्वती की उपमा
भरग्या - भरना,रमना
तरग्या - उतरना,प्रकट होना
परभाते - प्रातः काल,सुबह
मुण्डो - मुख
काम सरग्या - काम सिद्ध हो जाना
हिरदा - हृदय
खूंगाळी - एक राजस्थानी आभूषण जो गले में पहना जाता है।
माथे - मस्तक
रोळी - रोली, कुंकुम
पोळी - पुराने जमाने के दो दरवाजों के कच्ची मिट्टी के बने मकान (छान)
निसरग्या - निकलना,उगना
बाग माही - बाग के अन्दर
गावेली - गाना
शारदा - मां सरस्वती की उपमा
भरग्या - भरना,रमना
तरग्या - उतरना,प्रकट होना
परभाते - प्रातः काल,सुबह
मुण्डो - मुख
काम सरग्या - काम सिद्ध हो जाना
हिरदा - हृदय
खूंगाळी - एक राजस्थानी आभूषण जो गले में पहना जाता है।
माथे - मस्तक
रोळी - रोली, कुंकुम
पोळी - पुराने जमाने के दो दरवाजों के कच्ची मिट्टी के बने मकान (छान)
बन्धनवार - दरवाजे पर सजावट के लिए बांधा जाने वाला धागा
सावण फुआर - सावन में वर्षा की छिटें
आंगणे - घर का आंगन
मोहिनी - मन मोहने वाली
दूधार - दो धार वाली तलवारे जैसी
मूंगा - महगा
रूपाळी - रूपवती, सुन्दर
मान - इज्जत
बधाबा - बढ़ाना
उजड़ - उजड़े हुए, बेकार
नर - मानव,मनुष्य
दायजा - दहेज
खोटा - गलत
घिनोना - घृणा लायक
सांची - सच्ची
सरताज - सर का मस्तक
कुळ - कुल, वंश गोत्र
लाज - शर्म, इज्जत
काडू - निकलना
गाळी - डांटना,उलाहना देना
सावण फुआर - सावन में वर्षा की छिटें
आंगणे - घर का आंगन
मोहिनी - मन मोहने वाली
दूधार - दो धार वाली तलवारे जैसी
मूंगा - महगा
रूपाळी - रूपवती, सुन्दर
मान - इज्जत
बधाबा - बढ़ाना
उजड़ - उजड़े हुए, बेकार
नर - मानव,मनुष्य
दायजा - दहेज
खोटा - गलत
घिनोना - घृणा लायक
सांची - सच्ची
सरताज - सर का मस्तक
कुळ - कुल, वंश गोत्र
लाज - शर्म, इज्जत
काडू - निकलना
गाळी - डांटना,उलाहना देना
"बेटी थारे जन्म सू जन्म सुधरग्या,
ReplyDeleteम्हारे हिरदा की खूंगाळी
तनै कुण कहवै री काळी"
बेटी और उसके काले रूप को लेकर दिया गए तर्क लाजवाब बन पड़े हैं - शानदार रचना
बढ़िया जी
ReplyDeleteवैसे मुझे दिक्कत नही हुई समझने में
आभार
gani achhi lagi aap ri ya kavita manne
ReplyDeleteaap mara blog http://rajasthanikavitakosh.blogspot.com/ pe sawagat he
बहुत सुंदर रचना, भारत में गौरवर्ण के लिए आकर्षण वास्तव में एक अंतर्विरोध है। हमें अपने गहरे रंग पर गर्व होना चाहिए। यह रचना यही सिखा रही है।
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना रही है।
ReplyDeleteRamesh Fulwariya,Bagar