सबसे पहले आप सभी देशवासियों, दोस्तों,ब्लॉग जगत के सभी पाठकों ,ब्लॉग मालिको को हमारी तरफ से देश भर में आज मनाये जा रहे जन्माष्टमी पर्व की हार्दिक बधाईयां
वैसे गावों में यह त्यौहार "केसरिया" नाम से मनाया व जाना जाता है, इस दिन खिर चुरमें का भोग लगाकर केसरिये की पुजा की जाती है। केसरिये के दिन केसरिये के रूप में गांव के लोग खेजड़ी (जांटी) की हरि झड़ी(डाली) को केसरिया मानकर उसकी पूजा करते है। इसके बारे में एक कहावत है कि जब गोगापीर के जन्म के पहले गेरू गोरख.नाथ जी पाताल लोक से गूगल लाने के लिए गये थे और वहां गुरू गोरख नाथ जी ने अपनी माया के चक्र में डालकर पाताल लोक के नाग राज को प्रसन्न किया और वहां से गूगल लेकर आये जब पिछे पिछे पाताल लोक के नाग-राज और उनकी रानी गोरख-नाथ जी का पीछा करते करते भूमि लोक पर आ गये तो उस गूगल को उनसे छुपाने के लिए गोरख नाथ जी ने उस गुगल को जांटी (खेजड़ी) में बनी खोखर में और गोगापीर के जन्म की कहानी बताकर इस गुगल की रक्षा करने और इसकी खुशबू नाग.राज तक न पहुचने देने की प्रार्थना जाटी से की थी और जांटी ने उस समय ऐसा बताया जाता है कि उस गूगल को जाटीं ने अपने अन्दर समाहित कर लिया था तथा उसकी खुशबू तक बाहर नहीं जाने दी और जब नाग.राज ने गोरख नाथ की तलाशी ली तो उनके पास वो गुगल नहीं मिली तथा उन्हे बिना गुगल के वापिस पाताल लोक लौटना पड़ा था तथा फिर गोरख नाथ जी ने जाटी से वो गुगल वापिस मांगी तो जांटी ने उसे गुरू गौरख नाथ जी को अपने पेट से निकाल कर दिया था इस इस प्रकार उस गुगल की रक्षा करने पर गुरू गोरख नाथ जी ने जाटी को यह वरदान दिया था कि तेरी पूजा गोगापीर के जन्म से 1 दिन पहले की जायेगी और फिर गोगा जी की पूजा की जायेगी। क्योकि गोगाजी के गुगल का जन्म सबसे पहले जांटी की कोख से हुआ था उसके बाद उनकी माता की कोख से हुआ इस लिए इसी कथा के आधार पर गावों के लोग गोगा पीर के इस त्योहार से 1 दिन पहले ये कसरिया का त्यौहार इसी रूप में मनाते आ रहे है।
और इसके अगले दिन गौगानवमी यानि गोगापीर जी का त्यौहार "गुगा" मनाया जाता हैं जगह जगह गोगाजी की मेडी यानि (गोगाजी देव स्थान) पर मेला भरता है जहां आस पास के गांव के लोग आकर गोगाजी के मेडी पर धोक लगाते है और मेले का भरपूर आनन्द लेते है ।सबसे बड़ी बात ये की गोगाजी के इस त्यौहार को हिन्दु और मुसलमान दोनो ही धर्म के लोग मानते है। तथा पुजते भी है।
हमारे गांव में भी गोगा जी की तीन मेडिया है। दो गांव के दोनो तरफ एक पूर्व में तथा एक पश्चिम में और एक गांव के बीच में है।
जिनके बारे में मैने अपने गांव की पिछे की पोस्टों में लिखा बताया हुआ हे। इस गोगा नवमी के दिन पश्चिम दिशा वाली मेडी पर गोगापीर का विशाल मेला भरता हैं जहां हमारे गांव सहित आस पास के के हजारों श्रद्धालु भक्त अपनी श्रद्धा के साथ गोगाजी के दर्शन कर अपना माथा टेक अपने परिवार के कल्याण की कामना करते है और मेले का अनन्द लेते हैं और मेले में कुस्ती का आयोजन भी किया जाता है हर विजेता को नगद इनाम से नवाजा जाता है। पहले तो कुस्ती के अलावा कई कार्यक्रम आयोजित किये जाते थे लेकिन आजकल गांव में भी राजनैतिकरण हो गया और बाकि सब रश्में बन्द हाने लग गई है बस कुस्ती बाकि हैं
अगर अबकी बार मुनासिब हुआ तो आपको कुस्ती की फोटो व आगे की जानकारी से रूबरू करवाऊगां तब तक के लिए इजाज़त...
वैसे गावों में यह त्यौहार "केसरिया" नाम से मनाया व जाना जाता है, इस दिन खिर चुरमें का भोग लगाकर केसरिये की पुजा की जाती है। केसरिये के दिन केसरिये के रूप में गांव के लोग खेजड़ी (जांटी) की हरि झड़ी(डाली) को केसरिया मानकर उसकी पूजा करते है। इसके बारे में एक कहावत है कि जब गोगापीर के जन्म के पहले गेरू गोरख.नाथ जी पाताल लोक से गूगल लाने के लिए गये थे और वहां गुरू गोरख नाथ जी ने अपनी माया के चक्र में डालकर पाताल लोक के नाग राज को प्रसन्न किया और वहां से गूगल लेकर आये जब पिछे पिछे पाताल लोक के नाग-राज और उनकी रानी गोरख-नाथ जी का पीछा करते करते भूमि लोक पर आ गये तो उस गूगल को उनसे छुपाने के लिए गोरख नाथ जी ने उस गुगल को जांटी (खेजड़ी) में बनी खोखर में और गोगापीर के जन्म की कहानी बताकर इस गुगल की रक्षा करने और इसकी खुशबू नाग.राज तक न पहुचने देने की प्रार्थना जाटी से की थी और जांटी ने उस समय ऐसा बताया जाता है कि उस गूगल को जाटीं ने अपने अन्दर समाहित कर लिया था तथा उसकी खुशबू तक बाहर नहीं जाने दी और जब नाग.राज ने गोरख नाथ की तलाशी ली तो उनके पास वो गुगल नहीं मिली तथा उन्हे बिना गुगल के वापिस पाताल लोक लौटना पड़ा था तथा फिर गोरख नाथ जी ने जाटी से वो गुगल वापिस मांगी तो जांटी ने उसे गुरू गौरख नाथ जी को अपने पेट से निकाल कर दिया था इस इस प्रकार उस गुगल की रक्षा करने पर गुरू गोरख नाथ जी ने जाटी को यह वरदान दिया था कि तेरी पूजा गोगापीर के जन्म से 1 दिन पहले की जायेगी और फिर गोगा जी की पूजा की जायेगी। क्योकि गोगाजी के गुगल का जन्म सबसे पहले जांटी की कोख से हुआ था उसके बाद उनकी माता की कोख से हुआ इस लिए इसी कथा के आधार पर गावों के लोग गोगा पीर के इस त्योहार से 1 दिन पहले ये कसरिया का त्यौहार इसी रूप में मनाते आ रहे है।
और इसके अगले दिन गौगानवमी यानि गोगापीर जी का त्यौहार "गुगा" मनाया जाता हैं जगह जगह गोगाजी की मेडी यानि (गोगाजी देव स्थान) पर मेला भरता है जहां आस पास के गांव के लोग आकर गोगाजी के मेडी पर धोक लगाते है और मेले का भरपूर आनन्द लेते है ।सबसे बड़ी बात ये की गोगाजी के इस त्यौहार को हिन्दु और मुसलमान दोनो ही धर्म के लोग मानते है। तथा पुजते भी है।
हमारे गांव में भी गोगा जी की तीन मेडिया है। दो गांव के दोनो तरफ एक पूर्व में तथा एक पश्चिम में और एक गांव के बीच में है।
मेरे गांव की पश्चिम दिशा वाली गोगा मेडी |
अगर अबकी बार मुनासिब हुआ तो आपको कुस्ती की फोटो व आगे की जानकारी से रूबरू करवाऊगां तब तक के लिए इजाज़त...
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