सभी दोस्तो, ब्लॉगरों, देसवासियों को मकर सक्रांति पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं आज वैसे सुबह सुबह सर्दी ज्यादा ही थी पर पतंग प्रेमियों को सूर्य भगवान ने ज्यादा निराश सही किया जल्दी ही अपनी धूप बिखेर दी और सर्दी से कुछ राहत मिली नजारा बहुत ही अच्छा और साफ दिखाई देता है।
फिर क्या सभी लोग चढ़ गये अपने अपने पंतंग और मांझा लेकर घरों की छत पर और फिर ये काटा.... वो मारा... ये लो....वो लो ... उड़ी ये गई... ये ही शब्द और साथ में डी जे की कोलाहल हर तरफ से सुनाई दे रही थी। मुझे तो पंतंग उडाने आते नहीं है पर लोगों को उडाते देख मैं भी लुफ्त उठा लेता हूं। तो
मै भी चला गया अपने मित्र संजय चाौधरी के घर की छत पर क्योकि वहा से सारा तो कुछ समय तक वहां से लुफ्त उठाया और पतंग बाजी का मजा लिया फिर उसके बाद अपनी दुकान पर आ गया
मेरी दुकान जो पीरामल गेट के पास है वहा कुछ विचित्र ही नजारा देखने को मिला वहां उडता देखा एक बहुत ही आकर्षक और नायाब पतंग जो 5x5 फिट की पन्नी का बना था। और पीरामल गेट के उपर लहरा रहा था लगता है उसे मौहल्ले के लड़को द्वारा बहुत ही मस्कत और जुगाड़ करके बनाया गया था। उसे कार्टून पैक करने वाली रस्सी से उडाया जा रहा हैं जो अपने आप में एक विचित्र बात है।
उसके फोटो लिए बगैर मैं नहीं रह सका और मुझे लगा ऐसे जुगाड़ के दर्शन तो आपको भी करा देने चाहिए सो आपके साथ शेयर कर दिया
उसकी ताड़ी बांस की मोटी मोटी खप्पचीयों की बनी हुई थी और डोर इतनी मोटी कि कम से कम नजर वाले को भी नजर आ जाये
मुझे तो ये नजारा बहुत ही विचित्र लगा और आपको कैसा लगा बताये जरूर
या बडे बडे कलाकारों द्वारा इससे भी बड़े पतंग बनाये जाते होंगे पर ऐसे जुगाड़ नहीं
जुगाड़ बनाने में तो अपना शेखावाटी आगे है ही ये बताने की आवश्यकता नहीं है। इसका जिता जागता उदाहरण आपके सामने पेश है।
आज के लिए बस इतना ही अब सर्दी बढ़ने लगी है घर की तरफ रूख करता हूं। नमस्कार ...फिर मिलते है।
फिर क्या सभी लोग चढ़ गये अपने अपने पंतंग और मांझा लेकर घरों की छत पर और फिर ये काटा.... वो मारा... ये लो....वो लो ... उड़ी ये गई... ये ही शब्द और साथ में डी जे की कोलाहल हर तरफ से सुनाई दे रही थी। मुझे तो पंतंग उडाने आते नहीं है पर लोगों को उडाते देख मैं भी लुफ्त उठा लेता हूं। तो
मै भी चला गया अपने मित्र संजय चाौधरी के घर की छत पर क्योकि वहा से सारा तो कुछ समय तक वहां से लुफ्त उठाया और पतंग बाजी का मजा लिया फिर उसके बाद अपनी दुकान पर आ गया
मेरी दुकान जो पीरामल गेट के पास है वहा कुछ विचित्र ही नजारा देखने को मिला वहां उडता देखा एक बहुत ही आकर्षक और नायाब पतंग जो 5x5 फिट की पन्नी का बना था। और पीरामल गेट के उपर लहरा रहा था लगता है उसे मौहल्ले के लड़को द्वारा बहुत ही मस्कत और जुगाड़ करके बनाया गया था। उसे कार्टून पैक करने वाली रस्सी से उडाया जा रहा हैं जो अपने आप में एक विचित्र बात है।
उसके फोटो लिए बगैर मैं नहीं रह सका और मुझे लगा ऐसे जुगाड़ के दर्शन तो आपको भी करा देने चाहिए सो आपके साथ शेयर कर दिया
उसकी ताड़ी बांस की मोटी मोटी खप्पचीयों की बनी हुई थी और डोर इतनी मोटी कि कम से कम नजर वाले को भी नजर आ जाये
मुझे तो ये नजारा बहुत ही विचित्र लगा और आपको कैसा लगा बताये जरूर
या बडे बडे कलाकारों द्वारा इससे भी बड़े पतंग बनाये जाते होंगे पर ऐसे जुगाड़ नहीं
जुगाड़ बनाने में तो अपना शेखावाटी आगे है ही ये बताने की आवश्यकता नहीं है। इसका जिता जागता उदाहरण आपके सामने पेश है।
आज के लिए बस इतना ही अब सर्दी बढ़ने लगी है घर की तरफ रूख करता हूं। नमस्कार ...फिर मिलते है।
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