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Tuesday, October 12, 2021

क्रिकेट व आधुनिकरण ने ली आंचलिक (ग्रामीण ) खेलों की जान

    सोच कर बहुत दुःखी होना पड़ता है कि हमारे देखते ही देखते हमारे आंचलिक (ग्रामीण) खेल जिनका विवरण नीचे किया जा रहा है लगभग लुप्त हो गये हैं। आजकल आप अपने बच्चों को स्कूली समय के बाद (छुट्टी )के समय में देखते है तो वह या तो कमरे के कोने में बैठा टी.वी पर क्रिकेट का भूल भुलैया गेम देख रहा होगा या कोई  बेतुकी नई फिल्म देख रहा होगा या कान से चलभाष संयत्र (मोबाइल) लगाकर बात कर रहा होगा। तथा कभी कभार देखेंगे की वह अपने दोस्तों के साथ तीन डण्डे लेकर और एक बैट लेकर मोहल्ले,गली या रोड़ के पास आज का प्रसिद्घ भूल भुलैया मैच क्रिकेट खेल रहा होगा। अगर उन बच्चों से हमारे ग्रामीण खेलों के नाम जैसे सतन तलाई,रसड़ी सितोलिया(पिट्टू), हड़दड़ा,राउण्डर बैट,गिल्ली डण्डा,(मोई डंका)रस्सा कस्सी,चौसर,चर -भर, आर तिला,आदि के बारे पूछा जाये तो उन्हें अचम्बा होगा की ये किस चिज के नाम है। क्योंकि उन्हें इनके बारे में मालूम ही नहीं है। और ये ऐसा हुआ ज्यादा समय नहीं बिता हमारे देखते ही देखते ये खेल लुप्त हो गये इसका जिम्मेदार कौन है ?  टी.वी, आधुनीकरण,या हम स्वयं ?
ये आप बुद्धि जीवी लोग ही बता सकते है। मुझे ये अपनी संस्कृति को ह्रास होता दिखाई दे रहा है
      ज्यादा से ज्यादा 20 वर्ष पहले ये खेल गांवों, की शान हुआ करते थे और गांव के लोगो के मनोरंजन के साधन हुआ करते थे। मुझे ज्यादा तो याद नहीं लेकिन जिन खेलों को मैने गांव के दोस्तों के साथ खेला है और उन्हें खेलते हुए देखा है उनके बारे में मैं आपको उनके नाम सहित जितना मैं जानता हूं बताउगा। और इस ब्लॉग पर लिखना चाहूंगा ताकि आगे आनेवाली पिढ़ीयों के लिए ये नाम मात्र ही जीवित रह सके नहीं तो लोग खेलों के साथ उनके नाम भी भूल जायेंगे।
    ब मैं स्कूल में पढ़ता था जब स्कूल की छुट्टी के बाद सभी लड़के गांव के चौक में या गांव के बाहर बड़े चौक में इक्कठे हो जाते थे और इन खेलों को खेलते थे बहुत आनन्द आता था। शायद आपने भी ये खेल खेले होंगे।अगर खेले है तो आपको इनके आनन्द के बारे में ज्यादा बताने की जरूरत ही नहीं है। दीपावली की छुट्टियों में गायें भैसे व अन्य पशु (रोही) खेतों में चराने जाते थे और  इन खेलों के साथ दिन भर मौज मस्ती किया करते थे। समय कब बीत जाता था पता ही नहीं चलता था। ऐसे ही होली से 1 माह पूर्व ही ‘‘अर तिला’’ ‘‘छुपम छपाई’’ खेल जिसको  दो टोलिया बनाकर रात को हम बहुत ही शोख के साथ खेलते थे खेलते खेलते कब सुबह के 3-4 बज जाते थे पता ही नहीं चलता था कभी कभी तो अपने गांव की सीमा से कई दूर दूसरे गांव की सीमा में भी छुपने चले जाया करते थे कितना आनन्द आता था ? यह तो जिसने खेला हो वो ही जानता है।
दोस्तों आज जब वो बाते याद आती है तो एक बार तो रोने को दिल करता है अपने यहां की हालात और बेबसी देखकर  मन बहुत ही दुःखी हो जाता है। और फिर वही सवाल उठ खड़ा हो जाता है इन सब का जिम्मेदार कौन है?
      लि खने को तो मैं ऐसे बहुत सी बाते लिख कर चाहे एक किताब पुरी कर सकता हूं  वे कितने सुनहरे पल थे  उनके बारे में एक किताब लिखू तो भी कम है।
होलियों के दिनों में लड़कियां रात भर गीत गाती थी और लड़के खेलते रहते थे।
      काश  मैं उस समय खेले जाने वाले खेलों के फोटो आपको दिखाता लेकिन क्या करू मेरे पास उस समय कैमरा नहीं था और किसे पता थ कि ये खेल आगे चलकर लुप्त ही हो जायेगें अगर किसी भी गांव या कही भी मुझे ये खेल अब भी खेलते हुए मिले तो मैं आपको उनके फोटो  फिर कभी जरूर दिखाउगां। अब मैं कुछ खेल जो प्रायः सभी गांवों में खेले जाते थे उनका नाम लिख रहा हूं अगर उन खेलों का नाम आपकी नजरों में कोई दुसरा हो या आपके पास भी कोई ऐसे खेलों  के नाम हों तो टिप्पणी में जरूर लिखियेगा।
1.    सतन तलाई    
2.    रसड़ी      ‘‘रस रसड़ी का खेल बड़ा सळिया लागें जूते बगावे दलिया’’   

3.    सितोलिया (पिट्ठू)   
4.    हडदड़ा (टोरा गिण्डी)
5.    मार धड़ी       
6.    राउण्डर बैट       
7.    गुल्ली डण्डा/ गिल्ली डंडा  /मोई डंका 
8.    कुराक डंका       
9.    गुथा गिण्डी
10.    रस्सा कस्सी
11.    टिग्गा,टीटा, गिटा,गिट्टा 
12.    घुण घुण मिंगणा
13.    अगदड़ बगदड़
14    चौसर (
चौपड़)
15.    चर भर
16.    आर तिला (छुपम छुपाई)
17.    कबड्डी
18.    घोड़ा कबड्डी
19    चंगा,चावर
20   टिप टॉप
21   डाकन डब्बा , तत्ती
22   लँगड़ी टाँग
23   सांप सीढ़ी
24   अगड्ड भगदड़ (आज का लूडो)
25    कंचा,गोली,अंटा
26   चोर सिपाई
27   चिड़िया उड़
28    मोसम्बा भई मोसम्बा
29    चर -भर
30    आँख मिचोली
  
अपडेट 2021
कुछ खेलो के फोटो मिले हैं जो आपके सामने पेश हैं


डाकन डब्बा , तत्ती

टिप टॉप




 टिग्गा,टीटा, गिट्टा 

गुल्ली डण्डा/ गिल्ली डंडा  /मोई डंका 

चोर सिपाई

आँख मिचोली

कंचा,गोली,अंटा

सांप सीढ़ी

 सितोलिया (पिट्ठू)

चिड़िया उड़

मोसम्बा भई मोसम्बा




न खेलों के नाम मैने मेरे भांजे साहिल मान व पारस मान को साथ बिठाकर उन्हें बताते हुए लिखें है। ताकि वो तो याद रख सके।
 मुझे तो ये ही नाम याद है अगर आपके पास हो तो जरूर लिखना और हो सके तो इन खेलों को दुबारा जिवन्त करने की कोशिश करना ताकि हमारी संस्कृति या हमारा आंचलिक अस्तित्व बना रह सके। और हमारें बच्चे भी गर्व से इन खेलों के बारे में अपने बच्चों या अगली पिढ़ी को बता सके कि ये हमारें ग्रामीण खेल है।
नहीं तो आने वाले समय में बच्चे कमरे के कोने में ही सिमट कर रह जायेंगे। या फिर क्रिकेट जैसा भूल भूलैया खेल इनके दिमाग .....

ये है पहला डिजिटल गेम वीडियो गेम



इसके बाद लुप्त होते गए आंचलिक खेल




पीपल के पेड़ से पद्मश्री पुरस्कार तक प्रकृति प्रेमी हिमताराम जी भाम्बू, हमारे भाम्बू परिवार व देश के गर्व

 

 6 फ़ीट ऊंचा पालक का पौधा मालीगांव



फाल्गुन मास,होली और धमाल,मोज़ मस्ती कहाँ गए वो दिन?सब कुछ बदल गया

 

भाम्बू गौत्र का इतिहास


मेरे बारे में ..


3 comments:

  1. बहोत ही अच्छा लिखा है आपने. शुभकामनाएँ
    भारत प्रश्न मंच पर आपका स्वागत है. mishrasarovar.blogspot.com

    ReplyDelete
  2. सुरेंद्रजी आपने इन खेलो को यादो से जोड़ कर इन्हें संजीवनी देने का काम किया है | सचमुच आज का बचपन टीवी और क्रिकेट की दुनिया तक सिमट कर रह गया है |

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  3. वाह ! बढ़िया सूची दी लोक खेलों की|पर अफ़सोस की इनमे से ज्यादातर लुप्त हो चुकें है|

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