समझदार रा सगळा दुसमण पण बीं रो है गुण साथी।
जग बैरी और राम रूंसज्या बीं रो बालो कुण साथी॥
जद तक गोठ घूघरी राखी, मिंतर बारम्बार मिल्या।
काम पड्यो अर मुडकर देखयो,गिणती रा दो च्यार मिल्या॥
अब तूं गातो फिर गळियां में सुण साथी ओ सुण साथी।
जग बैरी और राम रूंसज्या बीं रो बालो कुण साथी॥
भोळो ढाळो प्रीत पतंगो भुळ कर भोळी बातां में।
जठै रात हथळेवा मांगे, जा पूग्यो बां राता में॥
हुयो एक बर मेळ दीवै सूं सेस बची गुण- गुण साथी।
जग बैरी और राम रूंसज्या बीं रो बालो कुण साथी॥
खुद री लूखी लागी चोखी गण गचियां री खोसी ना।
ब|त चासणी मांय डुबो कै लोगां बीच परोसी ना॥
संच कही माइत सा मरग्या ओ ही हो अवगुण साथी।
जग बैरी और राम रूंसज्या बीं रो बालो कुण साथी॥
थारो म्हारो मिनख जमारो चकमा दे र निकळ ज्यावै।
जीयां कोई खास भायलो मन में बड़ कर छळ ज्यावै॥
ज्यूं मोठां रो घुण है बैरी मोठां रो ही घुण साथी।
जग बैरी और राम रूंसज्या बीं रो बालो कुण साथी॥
बगड़ कस्बे के जाने माने राजस्थानी कवि भागीरथ सिंह 'भाग्य' जी की कविता
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