महाराणा प्रताप जयंती के अवसर पर सभी शूरवीर देशभक्त साथियें को को मेरा प्यार भरा नमस्कार
महाराणा प्रताप के बारे में आज कौन नहीं जानता मुझे आज उनके व्यक्तित्व के बारे में बखान करने की आवश्यकता नहीं है। मुझे तो आज बचपन में स्कूल में हिन्दी की किताब में पढ़ी में हुई राष्ट्रकवि कन्हैया लाल सेठिया जी की एक प्रसिद्ध कविता "पातळ'र पीथळ " याद आ गई शायद वो कविता आपने भी पढ़ी होगी अगर नहीं तो आज फिर पढ़ लेना मेरा मन आज इस जयंती के अवसर पर उसको यहां पर लिखने का कर गया। चित्र गुगल से साभार
इस कविता के लिए मैं महामना कन्हैया लाल सेठिया जी को कोटि कोटि धन्यवाद देना चाहुगां
जद याद करूं हळदी घाटी नैणां में रगत उतर आवै,
सुख दुख रो साथी चेतकड़ो सूती सी हूक जगा ज्यावै,
पण आज बिलखतो देखूं हूं जद राज कंवर नै रोटी नै,
तो क्षात्र-धरम नै भूलूं हूं भूलूं हिंदवाणी चोटी नै
मै'लां में छप्पन भोग जका मनवार बिनां करता कोनी,
सोनै री थाळ्यां नीलम रै बाजोट बिनां धरता कोनी,
ऐ हाय जका करता पगल्या फूलां री कंवळी सेजां पर,
बै आज रुळै भूखा तिसिया हिंदवाणै सूरज रा टाबर,
आ सोच हुई दो टूक तड़क राणा री भीम बजर छाती,
आंख्यां में आंसू भर बोल्या मैं लिखस्यूं अकबर नै पाती,
पण लिखूं कियां जद देखै है आडावळ ऊंचो हियो लियां,
चितौड़ खड़्यो है मगरां में विकराळ भूत सी लियां छियां,
मैं झुकूं कियां? है आण मनैं कुळ रा केसरिया बानां री,
मैं बुझूं कियां हूं सेस लपट आजादी रै परवानां री,
पण फेर अमर री सुण बुसक्यां राणा रो हिवड़ो भर आयो,
मैं मानूं हूं दिल्ली स तनैं समराट् सनेशो कैवायो।
कै आज हिंमाळो पिघळ बह्यो कै आज हुयो सूरज सीतळ,
कै आज सेस रो सिर डोल्यो आ सोच हुयो समराट् विकळ,
बस दूत इसारो पा भाज्यो पीथळ नै तुरत बुलावण नै,
किरणां रो पीथळ आ पूग्यो ओ सांचो भरम मिटावण नै,
बीं वीर बांकुड़ै पीथळ नै रजपूती गौरव भारी हो,
बो क्षात्र धरम रो नेमी हो राणा रो प्रेम पुजारी हो,
बैरयाँ रै मन रो कांटो हो बीकाणूं पूत खरारो हो,
राठौड़ रणां में रातो हो बस सागी तेज दुधारो हो,
आ बात पातस्या जाणै हो घावां पर लूण लगावण नै,
पीथळ नै तुरत बुलायो हो राणा री हार बंचावण नै,
म्हे बांध लियो है पीथळ सुण पिंजरै में जंगळी शेर पकड़,
ओ देख हाथ रो कागद है तूं देखां फिरसी कियां अकड़?
मर डूब चळू भर पाणी में बस झूठा गाल बजावै हो,
पण टूट गयो बीं राणा रो तूं भाट बण्यो बिड़दावै हो,
मैं आज पातस्या धरती रो मेवाड़ी पाग पगां में है,
अब बता मनै किण रजवट रै रजपूती खून रगां में है?
जद पीथळ कागद ले देखी राणा री सागी सैनाणी,
पण फेर कही ततकाल संभळ आ बात सफा ही झूठी है,
राणा री पाघ सदा ऊंची राणा री आण अटूटी है। ल्यो हुकम हुवै तो लिख पूछूं राणा नै कागद रै खातर,
लै पूछ भलांई पीथळ तूं आ बात सही, बोल्यो अकबर,
म्हे आज सुणी है नाहरियो स्याळां रै सागै सोवैलो,
म्हे आज सुणी है सूरजड़ो बादळ री ओटां खोवैलो,
म्हे आज सुणी है चातगड़ो धरती रो पाणी पीवैलो,
म्हे आज सुणी है हाथीड़ो कूकर री जूणां जीवैलो,
म्हे आज सुणी है थकां खसम अब रांड हुवैली रजपूती,
म्हे आज सुणी है म्यानां में तरवार रवैली अब सूती,
तो म्हांरो हिवड़ो कांपै है मूंछ्यां री मोड़ मरोड़ गई,
पीथळ राणा नै लिख भेज्यो, आ बात कठै तक गिणां सही?
पीथळ रा आखर पढ़तां ही राणा री आंख्यां लाल हुई,
धिक्कार मनै हूं कायर हूं नाहर री एक दकाल हुई,
हूं भूख मरूं हूं प्यास मरूं मेवाड़ धरा आजाद रवै
हूं घोर उजाड़ां में भटकूं पण मन में मां री याद रवै,
हूं रजपूतण रो जायो हूं रजपूती करज चुकाऊंला,
ओ सीस पड़ै पण पाघ नहीं दिल्ली रो मान झुकाऊंला,
पीथळ के खिमता बादळ री जो रोकै सूर उगाळी नै,
सिंघां री हाथळ सह लेवै बा कूख मिली कद स्याळी नै?
धरती रो पाणी पिवै इसी चातग री चूंच बणी कोनी,
कूकर री जूणां जिवै इसी हाथी री बात सुणी कोनी,
आं हाथां में तरवार थकां कुण रांड कवै है रजपूती?
म्यानां रै बदळै बैरयाँ री छात्यां में रैवैली सूती,
मेवाड़ धधकतो अंगारो आंध्यां में चमचम चमकैलो,
कड़खै री उठती तानां पर पग पग पर खांडो खड़कैलो,
राखो थे मूंछ्यां ऐंठ्योड़ी लोही री नदी बहा द्यूंला,
हूं अथक लड़ूंला अकबर स्यूं उजड़्यो मेवाड़ बसा द्यूंला,
जद राणा रो संदेश गयो पीथळ री छाती दूणी ही,
हिंदवाणों सूरज चमकै हो अकबर री दुनियां सूनी ही।
देश-भक्त,स्वाभिमानी,स्वतंत्रता,पराक्रम और शौर्य के प्रतीक व प्रेरणा स्त्रोत महाराणा प्रताप को मेरा शत-शत नमन |
आज महाराणा प्रताप जयंती हैं और हमार नगर बगड़ में भी नागरिक सदन में महाराणा प्रताप जयंती समारोह मनाई जा रही हैं जहां पर भाई नरेश जी गये हुए हैं वहां के बारे में जानकारी शायद वो आपको देंगें। महाराणा प्रताप के बारे में आज कौन नहीं जानता मुझे आज उनके व्यक्तित्व के बारे में बखान करने की आवश्यकता नहीं है। मुझे तो आज बचपन में स्कूल में हिन्दी की किताब में पढ़ी में हुई राष्ट्रकवि कन्हैया लाल सेठिया जी की एक प्रसिद्ध कविता "पातळ'र पीथळ " याद आ गई शायद वो कविता आपने भी पढ़ी होगी अगर नहीं तो आज फिर पढ़ लेना मेरा मन आज इस जयंती के अवसर पर उसको यहां पर लिखने का कर गया। चित्र गुगल से साभार
इस कविता के लिए मैं महामना कन्हैया लाल सेठिया जी को कोटि कोटि धन्यवाद देना चाहुगां
अरै घास री रोटी ही जद बन बिलावड़ो ले भाग्यो।
नान्हो सो अमरयो चीख पड़्यो राणा रो सोयो दुख जाग्यो।
नान्हो सो अमरयो चीख पड़्यो राणा रो सोयो दुख जाग्यो।
हूं लड़्यो घणो हूं सह्यो घणो मेवाड़ी मान बचावण नै
हूं पाछ नहीं राखी रण में बैरयाँ री खात खिंडावण में,
हूं पाछ नहीं राखी रण में बैरयाँ री खात खिंडावण में,
जद याद करूं हळदी घाटी नैणां में रगत उतर आवै,
सुख दुख रो साथी चेतकड़ो सूती सी हूक जगा ज्यावै,
पण आज बिलखतो देखूं हूं जद राज कंवर नै रोटी नै,
तो क्षात्र-धरम नै भूलूं हूं भूलूं हिंदवाणी चोटी नै
मै'लां में छप्पन भोग जका मनवार बिनां करता कोनी,
सोनै री थाळ्यां नीलम रै बाजोट बिनां धरता कोनी,
ऐ हाय जका करता पगल्या फूलां री कंवळी सेजां पर,
बै आज रुळै भूखा तिसिया हिंदवाणै सूरज रा टाबर,
आ सोच हुई दो टूक तड़क राणा री भीम बजर छाती,
आंख्यां में आंसू भर बोल्या मैं लिखस्यूं अकबर नै पाती,
पण लिखूं कियां जद देखै है आडावळ ऊंचो हियो लियां,
चितौड़ खड़्यो है मगरां में विकराळ भूत सी लियां छियां,
मैं झुकूं कियां? है आण मनैं कुळ रा केसरिया बानां री,
मैं बुझूं कियां हूं सेस लपट आजादी रै परवानां री,
पण फेर अमर री सुण बुसक्यां राणा रो हिवड़ो भर आयो,
मैं मानूं हूं दिल्ली स तनैं समराट् सनेशो कैवायो।
राणा रो कागद बांच हुयो अकबर रो' सपनूं सो सांचो,
पण नैण करयो बिसवास नहीं जद बांच बांच नै फिर बांच्यो,
पण नैण करयो बिसवास नहीं जद बांच बांच नै फिर बांच्यो,
कै आज हिंमाळो पिघळ बह्यो कै आज हुयो सूरज सीतळ,
कै आज सेस रो सिर डोल्यो आ सोच हुयो समराट् विकळ,
बस दूत इसारो पा भाज्यो पीथळ नै तुरत बुलावण नै,
किरणां रो पीथळ आ पूग्यो ओ सांचो भरम मिटावण नै,
बीं वीर बांकुड़ै पीथळ नै रजपूती गौरव भारी हो,
बो क्षात्र धरम रो नेमी हो राणा रो प्रेम पुजारी हो,
बैरयाँ रै मन रो कांटो हो बीकाणूं पूत खरारो हो,
राठौड़ रणां में रातो हो बस सागी तेज दुधारो हो,
आ बात पातस्या जाणै हो घावां पर लूण लगावण नै,
पीथळ नै तुरत बुलायो हो राणा री हार बंचावण नै,
म्हे बांध लियो है पीथळ सुण पिंजरै में जंगळी शेर पकड़,
ओ देख हाथ रो कागद है तूं देखां फिरसी कियां अकड़?
मर डूब चळू भर पाणी में बस झूठा गाल बजावै हो,
पण टूट गयो बीं राणा रो तूं भाट बण्यो बिड़दावै हो,
मैं आज पातस्या धरती रो मेवाड़ी पाग पगां में है,
अब बता मनै किण रजवट रै रजपूती खून रगां में है?
जद पीथळ कागद ले देखी राणा री सागी सैनाणी,
नीचै स्यूं धरती खसक गई आंख्यां में आयो भर पाणी,
पण फेर कही ततकाल संभळ आ बात सफा ही झूठी है,
राणा री पाघ सदा ऊंची राणा री आण अटूटी है।
लै पूछ भलांई पीथळ तूं आ बात सही, बोल्यो अकबर,
म्हे आज सुणी है नाहरियो स्याळां रै सागै सोवैलो,
म्हे आज सुणी है सूरजड़ो बादळ री ओटां खोवैलो,
म्हे आज सुणी है चातगड़ो धरती रो पाणी पीवैलो,
म्हे आज सुणी है हाथीड़ो कूकर री जूणां जीवैलो,
म्हे आज सुणी है थकां खसम अब रांड हुवैली रजपूती,
म्हे आज सुणी है म्यानां में तरवार रवैली अब सूती,
तो म्हांरो हिवड़ो कांपै है मूंछ्यां री मोड़ मरोड़ गई,
पीथळ राणा नै लिख भेज्यो, आ बात कठै तक गिणां सही?
पीथळ रा आखर पढ़तां ही राणा री आंख्यां लाल हुई,
धिक्कार मनै हूं कायर हूं नाहर री एक दकाल हुई,
हूं भूख मरूं हूं प्यास मरूं मेवाड़ धरा आजाद रवै
हूं घोर उजाड़ां में भटकूं पण मन में मां री याद रवै,
हूं रजपूतण रो जायो हूं रजपूती करज चुकाऊंला,
ओ सीस पड़ै पण पाघ नहीं दिल्ली रो मान झुकाऊंला,
पीथळ के खिमता बादळ री जो रोकै सूर उगाळी नै,
सिंघां री हाथळ सह लेवै बा कूख मिली कद स्याळी नै?
धरती रो पाणी पिवै इसी चातग री चूंच बणी कोनी,
कूकर री जूणां जिवै इसी हाथी री बात सुणी कोनी,
आं हाथां में तरवार थकां कुण रांड कवै है रजपूती?
म्यानां रै बदळै बैरयाँ री छात्यां में रैवैली सूती,
मेवाड़ धधकतो अंगारो आंध्यां में चमचम चमकैलो,
कड़खै री उठती तानां पर पग पग पर खांडो खड़कैलो,
राखो थे मूंछ्यां ऐंठ्योड़ी लोही री नदी बहा द्यूंला,
हूं अथक लड़ूंला अकबर स्यूं उजड़्यो मेवाड़ बसा द्यूंला,
जद राणा रो संदेश गयो पीथळ री छाती दूणी ही,
हिंदवाणों सूरज चमकै हो अकबर री दुनियां सूनी ही।
आपके पढ़ने लायक यहां भी है।
चोखी कविता सुणाई थ्हे। ईं मै वीर रस को ओज इतणो है की मुर्दा भी खड़्या हो जावे फ़ेर वो तो राणा प्रताप हो। जिंकी बीरता की कहाणी आज तक सारों जग गावै है।
ReplyDeleteमांई तू एहड़ो पूत जण, कै दाता कै सूर।
या तो तू रह बांझड़ी, मति गंवावै नूर॥
महाराणा प्रताप की जयंती घणी-घणी बधाई।
महान वीर, देश भक्त महाराणा प्रताप के बलिदान को नमन ! जब तक यह पृथ्वी रहेगी देश इनका का ऋणी रहेगा !
ReplyDeleteआपका बहुत आभार !
महाराणा नै नमन |
ReplyDeleteअफ़सोस क आ कविता अब स्कूलां पढाई कोनी जावै | सेकुलर सरकार है भाई शायद आ कविता सरकार नै साम्प्रदायिक लागगी हुसी |
सुरेन्द्र जी ,महाराणाप्रताप जयंती पर आपको शुभकामनाये | और उस देशभक्त को शत शत नमन |
ReplyDeleteNamskar Surendar Ji,
ReplyDeleteमहाराणाप्रताप जयंती पर आपको शुभकामनाये |
Bahut chokhi kavita hain.
- Ramesh Fulwariya,Jatawas(Bagar)