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Tuesday, June 29, 2010

अनूठी दुनियां के अनूठे लोग

786 के अंको का अनूठा संग्रह

786 नम्बरों वाले नोटों का संग्रह
                 दुनिया रचने वाले व दुनिया में गुजर बसर करने वालों का शोख भी ला जवाब है। जिस तरह सृष्टि के रचयिता ने 84 लाख भांति भांति के जीव जन्तु,पशु पक्षी,मानव,नदी पहाड़ जंगल आदि की रचना की है। उसी प्रकार दुनिया वालों की शोख भी भिन्न- भिन्न बनाये है। कोई खाने पाने में मस्त है कोई धन कमाने में-जोड़ने में व अपनी मोटर कार,बंगले में मस्त, कोई चोरी जुआ,इश्क़ मुहब्बत में मस्त है। ऐसा ही एक उदाहरण है बगड़ कस्बे में जो झुन्झुनूं जिले से 15 कि.मी पूर्व में पड़ता है  बगड़ कस्बे के मण्ड्रेला रोड़,जाटाबास में रहने वाले रमेश फुलवारिया का है जो एक सरकारी पद पर शिक्षक है।
                 रमे फुलवारिया का शोख कब आदत में बदल गया उन्हें खुद पता नहीं। जब वह छोटा था तब अपनी दादीजी के पास रहकर बगड़ में पढ़ाई करता था उसका बाकी परिवार मुंबई रहता था एक बार उसके पापा मुंबई जा रहे थे। तब उन्होंने उसे एक 10 रुपये का नोट दिया और कहा इस पर खुदा के अंक लिखे  है इसे सम्हाल कर रखना यह मुसीबत में तुम्हारे काम आयेगा इस नोट के अन्तिम अंक 786 थे बड़े ही भोलेपन से रमेश कहते है। हमें तो उस समय कहीं खुदा के अक्सर नजर नहीं आये। जैसा हमारे पापा जी ने कहा हमने मान लिया। हमारे मन में एक बार सवाल भी  उठा की सिर्फ नम्बर ही क्यों लिखते है पुरा नाम क्यों नहीं? मान्यता के मुताबिक जब ‘‘बिस्मिल्लाह अल रहमान अल रहीम’’ लिखते है तो उसका जोड़ 786 होता है। इसलिए ऐसी जगहों पर जैसे घर दप्तर के दरवाजे आदि पर जहां खुदा का नाम लिखना बेअदबी माना जाता है, वहां यहीं अंक 786 लिखा जाता है। बस इसके बाद तो मेरा शोख बढ़ता हुआ कब आदत में बदल गया यह खुद को भी नहीं पता है।
सो रूपये के व अन्य नोटों  जिनके नम्बर 786 है उनका संग्रह
               रमेश फुलवारिया ने बताया कि एक दिन मैं स्कूल गया था पिछे  से मेरी दादीजी ने मेरे इकट्ठे किये गये 786 अंक वाले नोटों से अनजाने में राशन का सामान ले आई और जब मैं दोड़कर राशन की दुकान पर पहुंचा तब तक वो नोट दूसरे ग्राहक को दिये जा चुके थे। तब मुझे बहुत गहरा दुख हुआ और अहसास हुआ कि नोटों को सहेजने के साथ-2 सुरक्षित रखना भी बड़ी जिम्मेदारी है उसके बाद भी फुलवारिया ने हार नहीं मानी तथा इरादे और भी ज्यादा बुलन्द हो गये जो भी नोट हाथ में आता अंको पर नजर पहले जाती और नोटों को सहेजना शुरू कर दिया शुरूआत में तो घर वाले आस पास के लोग और दोस्त इसे इनका पागलपन समझ कर उन पर हंसते थे लेकिन बाद मे वे भी इस तरह के नोट इक्ट्ठा करके उन्हें देने लगे। इस तरह धीरे धीरे उनके पास इन नोटों का संग्रह होने लगा। आज उनके खजाने में 786 अंक के एक,दो,पांच,दस,,बीस,पचास,सौ,पांच सौ,हजार रूपये नोट शामिल है।
बस टिकट व नोटों के संग्रह के साथ रमेश
              फुलवारिया को अब तो नोटों का ही नहीं 786 के अंको वाले रेल टिकट,बस टिकट,रसीद, बिल आदि का भी संग्रह करने लगा है।
               फुलवारिया को किसी विशेष चीजों का संग्रह करने की आदत बचपन से ही थी। वह बचपन में रंग बिरंगे पंख,कांच की गोली, एक ही टाईटल के गाने,बटन,शायरी, विचित्र प्रकार के पत्थर के टुकडों का संग्रह रखता था। 1998 में  अलग जगहों के पहाडों से इकट्ठे किये गये पत्थरों का संग्रह आज भी बी.एल.  सीनियर सैकण्डरी स्कूल की कृषि विज्ञान की प्रयोग शाला में प्रोजेक्ट के रूप में रखे है। जो अन्य विद्यार्थियों को भी ऐसी दुर्लभ वस्तुओं को संग्रहीत करने के प्रेरित करते है।
               मैं और मेरा दोस्त फुलवारिया आप से भी अनुरोध करते हैं अगर आपको भी अगर कोई ऐसी दुर्लभ वस्तु या पुराने सिक्के या कोई विचित्र वस्तु मिले या प्राप्त हो तो उसे सहेजे या हमें हमारे पते पर भिजवा दे। संगह करना एक अच्छी आदत है।
Ramesh Kumar Fulwariya
 रमेश फुलवारिया का परिचय -
 नाम --  रमेश कुमार (अध्यापक)
योग्यता - बी.एस सी., 

एम.एस सी.,एम.ए.,एम.सी.ए.
पी.जी.डी.सी.ए. .पी.जी.डी.सी.ए.,डी.आई.टी.,बी.एड
पदाधिकारी -
1.    कोषाध्यक्ष - मन्दिर स्वामी खेतादास समिति लोहार्गल,जिला झुन्झूनूं
2.    सचिव - मां सरस्वती चिल्ड्रन एकेडमी शिक्षण संस्थान बगड़,

                    जिला झुन्झुनूं
3.    संरक्षक  -  रैगर समाज समिति बगड़,जिला झुन्झुनूं
4.    पूर्व विज्ञान सचिव सेठ मोतीलाल (पी.जी) कॉलेज झुन्झुनूं
         पता - मण्ड्रेला रोड़,जाटाबास,पोस्ट-बगड़
          जिला झुन्झुनूं (राज.)
          मो. 08955263800

             E mail - ramesh_fulwariya@yahoo.com

तूं के बणणो चावै है? 

Wednesday, June 16, 2010

झुन्झुनूं जिले का गौरव बढ़ाने का जज्बा

झुन्झुनूं जिले का गौरव बढ़ाने का जज़्बा

     दोस्तो रणबांकुरों की धरती राजस्थान और उसमें भी अग्रणी शेखावाटी तथा शेखावाटी  में अग्रणी जिला झुन्झुनूं। एक और यहां मुछें न शोहरत  की धोतक मानी जाती है वहीं दूसरी और ये मुछें ही यहां कुछ करने का जज़्बा लिए है एक यहां के रिटायर्ड हवलदार फूलचन्द धत्तरवाल पुत्र श्री हणमानाराम जी निवासी गोविन्दपुरा पो. जखोड़ा वाया मण्ड्रेला ,जिला झुन्झुनूं राजस्थान का रहने वाला है। फूलचन्द जी  वर्तमान में चण्डीगढ़ में एक होटल में गार्ड के पद पर कार्यरत है। यह पहले बी.एस.एफ में नौकरी करते थे  निशाने बाजी में इन्होने अपनी रजिमेंट का नाम रोशन किया  और निशाने बाजी में इन्हें कई मैडल भी मिले है। ये मैडल इन्हों ने अपने घर में सजाकर रख रखे है। निशाने बाजी के ये एक नम्बर के माहिर आदमी है। इनका एक शोख  मुछ बढ़ाना भी है। वर्तमान में इनकी मुझे 1.6 फिट लम्बी है। आज से 2 साल पहले इन्होने अपनी मुझे 2 फिट तक बढ़ा ली थी जो किसी करण वश काटनी पड़ गई। अब यह इनको लगभग 12 फिट तक बढ़ाना चहते है। और मुझे बढ़ाकर झुन्झुनूं जिले का नाम राजस्थान में गौरवान्वित करना चाहते है। इनका कहना  है कि ये अपनी मुछों से भारी वजन भी उठा कर दिखायेगें।  इसके लिए ये अपनी मुछों को बादाम वगैरह के स्पेशल तेल से सिंचाई (नह लाते) है। मैने इनकी मुछों के बाल पकड़कर देखे दोस्तो वे देखने बड़े ही मुलायम है और मजबूती बहुत ज्यादा है।
दोस्तो आषा करते है। कि ये अपनी मुछो से बजन उठाकर कई कारनामें दिखाऐं और झुन्झुनूं का गौरव बढ़ाऐ और हमारे ब्लॉग की शान बने।

Tuesday, June 15, 2010

कुदरत का कमाल चूहे के कांटेदार बाल

मेरे द्वारा हाथ लगाये जाने पर अपनी कोटेदार त्वचा के कांटे खडै किये


दोस्तों शेखावाटी क्षेत्र में प्रायः पाया जाने वाला काँटेदार चूहा (झाऊ चूहा) यह जन्तु अपने पुरे शरीर पर नुकीले कांटे लिए होता है इसका मुँह छोटा सा नुकीला होता है छोटे - छोटे कान होते है। दो छोटे छोटे पंजे होते है।   
अपना मुँह दिखाता हुआ और चलता हुआ
एक शाम मैं अपनी दुकान से घर को जा रहा जब मैं घर पहुंचा तो मैने कुछ चिक.चिक. सूँ. सूँ. का शोर सुना मैने बाईक रोक कर देखा तो एक जन्तु सांप से लड़ रहा हैं और उसने सर्प को लगभग घायल ही कर दिया था मैं जैसे ही पास गया तो पता चला वह और कोई नहीं यही जन्तु झाऊ चूहा था, जिसके शरीर पर नुकीले कांटे थे। मेरे पास जाने पर वह छुपने के लिए दौड़ा तब जाकर सांप की जान छुटी और जब तक मैं लकडी या कोई वस्तु सर्प को मारने के लिए लाता सर्प भी गायब हो चुका था लेकिन यह चूहा ज्यादा दूर नही जा सका क्योंकि यह ज्यादा तेज नहीं दोड़ता मनुष्य या किसी भी जानवर जिसका उसे डर होता है उसकी आहट या आवाज सुनकर जहां होता है वहां से पांच चार फिट दूर जाकर दुबक कर बैठ जाता है। उसने भी वैसे ही किया मेरे घर की दिवार से सटक कर दुबक गया जब मैंने उसको हाथ लगाया तो उसने अपने  नुकीले कांटे खड़े कर दिये जो मेरे हाथों में चुभने लगे। फिर मैने बैग में  से अपना कैमरा निकाला (जी हां मैं एक फोटो ग्राफर का कार्य करता हूं बगड़ में मेरी स्टूडियों की दूकान ‘‘श्री नेशनल कम्प्यूटर आर्ट एण्ड डिजिटल स्टूडियो के नाम से है) और उसके फोटो उतार लिये।  (दोस्तों मुझे दुःख होगा कि मैं सर्प और झाऊ चूहे की लडाई की तस्वीरे नहीं ले सका) दोस्तो इस जानवर से किसी भी प्राणी को डर नहीं है क्योकि यह किसी को काटता नहीं है। अपना जीवन यापन इधर उधर घुमफिर करके छोटे मोटे किड़े मकोड़े खाकर अपना पेट भर लेता है।  और खतरनाक जानवर सर्प, नेवला जैसे जानवरों से बचाव के लिए क़ुदरत ने इसके शरीर पर  नुकीले कांटेदार त्वचा दी है। जिससे यह विपत्ति के समय अपनी रक्षा कर सके यह विपत्ती के समय अपना छोटा सा मुँह और पंजे जैसा कि फोटो में दिखाया गया है
अपने मुहँ को व पंजों को छुपाता हुआ
   पनी त्वचा में छिपा लेता है, और बाकी बचतें है, कांटे जिनको किसी का डर नहीं। यह सर्प को मार डालता है वह ऐसे कि  यह छुपकर सर्प के उपर लुढ़कने लगता है और कांटे सर्प के शरीर में चुभने से खुन बहने लगता हे। और जब सर्प गुस्से में आकर अपना फन या मुह उसे काटने के लिए उसके शरीर पर मारता है तो उसका मुँह नुकीले कांटों से कट जाता है और अन्तः उसे हारकर अपने प्राण गंवाने पड़ते है।  ऐसे यह जन्तु सर्प,नेवले जैसे खतरनाक जंतुओं से अपनी रक्षा करते हुए लड़ भी सकता है और उन्हें मार भी सकता है।
   आजकल यह जन्तु प्रायः लुप्त सा होता जा रहा है। गांवों में लोग इसके बारे में एक कहावत कहते और करते भी है वे या तो इसे मार कर या अपने आप मरे हुए झाऊ चूहे के शरीर की कांटेदार त्वचा की धुनी (उसे किसी पात्र में जलाकर जलने से उठ ते हुए धुएँ ) को अपने खेत में सब्जी बगैर की क्यारियों में घुमाते है कहते उससे सब्जी के पौधों में पैदावार या फल अच्छे लगेंगे।  
   

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