सूचना

यह वेब पेज इन्टरनेट एक्सप्लोरर 6 में ठीक से दिखाई नहीं देता है तो इसे मोजिला फायर फॉक्स 3 या IE 7 या उससे ऊपर का वर्जन काम में लेवें

Thursday, August 12, 2010

हर्ष उल्लास का पर्व तीज

सबसे पहले मैं ब्लॉग जगत के सभी पाठको ब्लॉग स्वामियों को आज के त्यौहार तीज की हार्दिक शुभकामनाएं देना चाहूंगा
         यह त्यौहार सुख व समृद्धि का प्रतीक माना जाता है इसलिए यह खुशी का त्यौहार व हर्ष उल्लास का का त्यौहार है। आज यह त्यौहार मात्र घर और अखबार के पन्नो पर ही सिमट कर रह गया है। बिल्कुल सुना सा लगता है आज यह त्यौहार है न कोई खुशी, न कोई मौज मस्ती, न झुले,न पिंग।  मुख्यतः लोग आज बस इसको अपना पेट भरने के लिए मनाते है। यानि घर में अच्छा खाना बना लिया और  तीज माता को भोग लगाया और गटक लिया मन गई तीज और वही रेलम पेल में मस्त काटने लगे अपनी जिन्दगी । हालाकि कुछ एक स्थानों जरूर इसे आज भी परम्परागत ढ़ग से मनाया जाता है,परन्तु वो बात कहा?
          अगर पुराने जमाने यानि आज से लगभग 8-10 वर्ष पूर्व को याद करें तो यह त्यौहार बहुत हर्ष हो उल्लास के साथ मनाया जाता था इस दिन बहन, बैटिया अपने अपने पीहर आ जाती थी और अपनी सखी सहेलियो से मिलती थी और गप-सप हांकती थी।
            सावन मास लगते ही बडे़- बडे़ वृक्षों की डालियों पर भारी-भारी रस्सों से झुले डाले जाते थें और बहन,बैटियां उन पर झुले झुलती थी और लोक गीत गाती थी बड़ा मनोरम दृश्य लगता था। जहां कही भी देखते वही डालियों पर झुले झुलते लोग दिखाई देते थे । लोगों में झुले झुलने (पींग) का कम्पीटीशन भी होता था झुला झुलने वाला कितनी उँचाई तक की पींग चढ़ा सकता है। कितना ऊंचा हिण्डा चढ़ा सकता है। दुसरा उससे भी ज्यादा चढ़ाने की कौशिस करता था बड़ा मजा आता था जगह जगह तीज माजा की सवारिया निकाली जाती थी       
             आज बस अखबार के एक छोटे से कोने में तीज सवारी का समाचार पढ़कर ही बस लोग तीज मना लेते है और सवारी में घर बैठे ही शामिल हो जाते है। ये कैसी विडम्बना है। मुझे तो लगता है ऐसे करते करते  ये हमारे त्यौहार लुप्त ही हो जायेगें? आज जब देखते है तो पार्को में लगे फ़िक्स झुलों के अलावा कही कोई झुला डला नजर नहीं आता है।  कहा गये वों झुला कम्पीटीशन करने वाले लोग, कहा गई वो मौज मस्ती कहा गये वो खुशी के दिन ? ये तो आप बुद्धिजीवी लोग ही बता सकते है।
 गणगौर पर्व के बाद 3-4 माह बाद यही त्यौहार आता है जो सब त्यौहार के आने का रास्ता साफ करता है इसके बारे में एक राजस्थानी कहावत भी है -
 ‘‘तीज त्यौहारा बावड़ी, ले डूबी गणगौर ’’  
       अर्थात गणगौर के डुबोने या गणगौर पर्व के कई दिनों के बाद तीज त्यौहार ही पहला त्यौहार आता है जो अन्य त्यौहारों के आने की सुचना व खुशीया हमें देता है।
   शायद लोगो की भावनाओं को समझकर ही सावन मास में निकलने वाली लाल रंग का जीव तीज जो अक्सर प्रायः जमीन पर चलता दिखाई दिया करता था आज लुप्त प्रायः सा हो गया है इसलिए मैं उसकी फोटो आपके समक्ष नहीं रख पाऊगां
      यह जीव बहुत ही कोमल होता है। और इतना मनभावन लाल रंग का होता है जमीन पर चलता बहुत ही अच्छा लगता आप ने इसे जरूर देखा होगा शायद यह त्यौहार इसी जीव के उपर मनाया ताजा है। इस त्यौहार के मनाने के बारे में  तो मैं ज्यादा नहीं बता पाऊगा

1 comment:

  1. सब कुछ अब औपचारिकता रह गयी है | ना वो लोग अब रहे ना वो त्यौहार रहे है | प्रदेश में बैठे लोग पुराने दिनों को याद करके सोचते है की अब भी उनके यंहा पुराने समय जैसा ही सब कुछ चल रहा होगा लेकिन जब वे आकर देखते है तब उन्हें निराशा ही हाथ लगती है|

    ReplyDelete

आपके द्वारा दी गई टिप्पणी हमें लिखने का होसला दिलाती है।

अन्य महत्वपूर्ण लिंक

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...