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Sunday, May 30, 2010

तैन कुण कहवै री काळी,

डॉ. कैलाश जी मण्ड्रेला की देश की बेटियों  के सम्मान में सर्मपित कविता
    दोस्तो मैं अपने वादे के मुताबिक मण्ड्रेला जी की प्रसिद्ध कविता तनै कुण कहवै री काळी आपको लिख रहा हूं इस कविता में मण्ड्रेला जी ने इस समाज में कन्या भू्रण हत्या पर कुठरा घात किया है।और  लड़की के रूप की कई उपमाये देकर समाज को बताना चाहा है कि लड़किया पहले भी और आज भी हमारे देश और समाज की आन और शान है। भारत में हुई विदुषियों का बखान करने के साथ -साथ  आज समाज में लगातार बढ़ रहे लिंगानुपात को रोकने का संदेश दिया है तथा कन्या भ्रूण हत्या को समाज के लिए  पाप अभिशाप बताया है। लड़की के जन्म को आज का समाज बोझ मानता है लेकिन कवि ने घर में लड़की के जन्म एक सौभाग्य बताया है।
दोस्तों आज से हम भी प्रण ले की कन्या भ्रूण हत्या को रोके और रोकने में सरकार समाज देश का साथ दे...
अगर कविता पंसद आये तो टिप्पणी जरूर दे।
 ‘‘ हे री तनै कुण कहवै री काळी, म्हारे घर की तूं दिवाली,
हे री तनै कुण कहवै री काळी,
म्हारे घर की तूं दिवाली,
हसंदे तो जाणे नी कमल निसरग्या, 
गुम सुम होवे बाग माही फूल झड़ग्या,
गावेली उमग सूर शारदा रा भरग्या,
नाचे घर आंगणे तो देव सारा तरग्या,
परभाते मुण्डो देख्यो सारा काम सरग्या, 
बेटी थारे जन्म सू जन्म सुधरग्या,
म्हारे हिरदा की खूंगाळी
तनै कुण कहवै री काळी,
म्हारे हिरदा की खूंगाळी .....
माथे री है रोळी, पोळी री तूं बन्धनवार है ,
कोयल है बाग री सावन फुआर है,
चान्दणी है आंगणे री, तूळसी री डार है,
मन की मछळी तूं, कली कचनार है,
हरिणी सी मोहनी, तूं चाले दूधार है , 
तूं भवानी माही दुर्गा रो अवतार है,
पूजा की  है पावन थाळी, 
तनै  कुण कहवै री काळी, 
पूजा की  है पावन थाळी, तनै  कुण .....
काळा तो किशन हुया, काळा साळेगा्रम जी, 
हुई काली माता, हुए काळे श्रीराम जी,
काळी घणी कस्तूरी रा मूंगा घणा दाम जी,
काळे भैरू नै तो करै जगत सलाम जी,
हीरा और कोयला में एक तत्व नाम जी,
काळे नेल्सन मण्ड्रेला नै नोबल ईनाम जी,
हेमा ज्यू घणी रूपाळी , 
तनै  कुण कहवै री काळी,
हेमा ज्यू घणी रूपाळी , तनै  कुण कहवै ......
गारगी, सीता, सावित्री, मैत्री, गणुखान है,
पिटी उषा, कल्पना, बछेन्द्री सी उडान है,
इन्दिरा, सरोजनी किरण के समान हैं ,
प्रतिभा, सुनिता, रजिया सी सुल्तान हैं, 
मीरा महादेवी थी, जबान लता सी जवान है,
पन्ना, पदमनी, राणी झासी सी महान हैं,
म्हारो मान बधाबा वाळी,
तनै  कुण कहवै री काळी,
 म्हारो मान बधाबा वाळी तनै  कुण ....
बेटिया नै जो निचावे वो उजड़ समाज, 
मारै भ्रूण बेटिया रा नर नहीं बाज है,  
दायजा, तलाक सब खोटा ये रिवाज है,
करै मार पीट जीव से घिनोना काज है, 
बेटिया तो जीवण री सांची सरताज है,
एक बेटी दो कूळा री जग माही लाज है, 
सत पथ री करे रूखाळी,
तैन कुण कहवै री काळी,
सत पथ री करे रूखाळी, तैन कुण....
म्हारो मान बधाबा वाळी, 
तनै  कुण कहवै री काळी,
 काडू बानै मैं गाळी, 
जो तनै कहवै री काळी।
म्हारो मान बधाबा वाळी, 
तनै; कुण कहवै री काळी,

कठिन शब्दों के अर्थ
निसरग्या        - निकलना,उगना
बाग माही        - बाग के अन्दर
गावेली        - गाना
शारदा        -  मां सरस्वती की उपमा
भरग्या        - भरना,रमना
तरग्या        - उतरना,प्रकट होना
परभाते         - प्रातः काल,सुबह
मुण्डो            - मुख
काम सरग्या    - काम सिद्ध हो जाना
हिरदा            - हृदय
खूंगाळी        - एक राजस्थानी आभूषण जो गले में पहना जाता है।
माथे            - मस्तक
रोळी            - रोली, कुंकुम
पोळी            - पुराने जमाने के दो दरवाजों के  कच्ची मिट्टी के बने मकान (छान)
बन्धनवार        - दरवाजे पर सजावट के लिए बांधा जाने वाला धागा
सावण फुआर    - सावन में वर्षा की छिटें
आंगणे        -  घर का आंगन
मोहिनी        - मन मोहने वाली
दूधार            - दो धार वाली तलवारे जैसी
मूंगा            - महगा
रूपाळी        - रूपवती, सुन्दर
मान            - इज्जत
बधाबा            - बढ़ाना
उजड़            - उजड़े हुए, बेकार
नर            - मानव,मनुष्य
दायजा        - दहेज
खोटा            - गलत
घिनोना        - घृणा लायक
सांची            - सच्ची
सरताज        - सर का मस्तक
कुळ            - कुल, वंश गोत्र
लाज            - शर्म, इज्जत
काडू            - निकलना
गाळी            - डांटना,उलाहना देना


 

Tuesday, May 25, 2010

10 करोड़ कण्ठां रमती मां भाषा राजस्थानी

10 करोड़ कण्ठां रमती मां भाषा राजस्थानी
डॉ कैलाश जी मण्ड्रेला राजस्थान के प्रसिद्व कवि इनके द्वारा रचित कविता
हां दोस्तो  राजस्थान का रहने वाला हूं सबसे पहले अपनी भाषा की बात करना चाहुगां और जितना हो सके अपनी भाषा के बारे में लिखना और सुनना चाहुंगा।
पिछले वर्ष  दिसम्बर 2009 में झुन्झुनूं जिले के बस्बे चिड़ावा में एक विशाल 1008 कुण्डिय यज्ञ का आयोजन सेठ सहुकारो द्वारा करवाया गया था उसमें 31 दिसम्बर को एक कवि सम्मेलन रखा गया था उस कवि सम्मेलन में राजस्थान के कई कवियों को बुलाया गया था सभी ने किसी ने हास्य किसी ने व्यग किसी ने वीर रस की कविताएं सुनाई। सौभग्य से मुझे भी उनकी कविताए सुनने का मोका मिला दोस्तो मैने इतना आन्नद कभी प्रप्त नहीं किया होगा जितना उन कविताओ को सुनकर किया तिन घण्टे चला यह कार्यक्रम पता नहीं कब तीन घण्टे बीत गये। उस प्रोग्राम में सुनी एक कविता जो में रिकॉर्ड करके लाया था मुझे बहुत ही अच्छी लगी। शायद आपको भी अच्छी लगेगी। ऐसी आशा है । यह कविता लिखी है राजस्थानी के प्रसिद्व कवि कैलाष जी मण्ड्रेला जो राजस्थान के निवासी है और ज्यादतर राजस्थानी भाषा की कविताएं करते है। उन्हांेन बताया कि ‘‘भारत में 10 करोड़ लोग राजस्थानी बोलते है आज भी वो भाशा संवेधानिक मान्यता के लिए तरस रही है।’’ मैं मण्ड्रेला जी बहुत बहुत आभारी हूं कि उन्हानें चिड़ावा में आकर हमें यह कविता सुनाई और राजस्थानी भाषा के प्रति उनके रवैये को भी मैं प्रणाम करता हूं।
    हां दोस्तो उनका कहना सही जिस भाषा को 10 करोड़ लोग बोल रहे हैं वो भाषा आज संवेधानिक भाषा की मान्यता प्राप्त नहीं कर पाई हैं राजस्थानी भाषा के लिए अपनी मातृ भाषा के लिए उनकी ये चार पक्तिया मेरा और वहां बैठे तमाम कई हजारों श्रोताओं का मन भाव विभोर कर गई
डॉ कैलाश जी मण्ड्रेला राजस्थान के प्रसिद्व कवि हैं

‘‘ णगिण कवियां जिणं री किरत रचनावां मांई बखाणी है
और जिणं रो इतिहास अनुठो है गाथावां घणी पुराणी है
और जिणं रा शब्दां री बणगठ अर ताकतड़ी किण सूं छानी है
सूणता ही नाचे मारूड़ी गरमावे जोश जवानी है
जिसूं पहचाने सब म्हाने आपांरी खास निशानी है
वा 10 करोड़ कण्ठां रमती मां भाषा राजस्थानी है।’’
कठिन शब्दों के अर्थ नीचे है

अणगिण    -  बहुत सारे जिनकी कोई गिनती या निश्चित आंकड़ा न हो
जिणं          - जिसकी (यानि राजस्थानी भाषा की)
किरत          -  किर्ती, यश
रचनावां    -  रचनाएं, कविताएं
मांई        -  के अन्दर, के भीतर
बखाणी        - सुनाई है, प्रचार करना
अनुठो        - विचित्र
गथावां        - कथाएं, कहानियां वार्ताएं
घणी        - बहुत ज्यादा
बणगठ        - बनावट
छानी        - छुपी हुई
जिसूं        - जिससे
म्हाने        - हमें
आपांरी        - अपनी
कण्ठा रमती    - गले के द्वारा बोली जाने वाली
 आगे दूसरे पोस्ट में इनकी कविता लिख रहा हूं ....
‘‘ तने कुण कहवै री काळी’’

Wednesday, May 12, 2010

राजस्थान रोड़वेज की लापरवाही कहें या भूल ?

पंचर टायर व बीना टूल के खड़ी बस
राजस्थान रोड़वेज की लापरवाही कहें या भूल ?

किसी ट्रक  चालक से टूल (रॉड़) मांगकर लाता रोड़वेज बस का चालक
हां दोस्तो एक आश्चर्य दिनांक 10 मई 2010 सोमवार मैं मेरे एक दोस्त मनोज को डिजिटल केमरा दिलवाने के लिए दिल्ली जा रहा था। हम दोनों प्रातः 4.25 बजे बगड़ कस्बे से राजस्थान रोड़वेज की दिल्ली जाने वाली एक बस में सवार हो गये। बस जब रेवाड़ी व धारूहेड़ा के बीच में पहुंची तो बस का टायर पंचर हो गया यह कोई आश्चर्य की बात नहीं अमुमन सफर में एसा हो जाता है आश्चर्य तो तब हुआ जब बस के परिचालक व चालक महोदय भी सभी सावारियों की तरह बस से नीचे उतर कर बैठ गये? पुछा गया तो बताया की बस में स्टेपनी व टायार खोलने के लिए टूल (रॉड वगैर) नहीं हैं। क्या करें? उनकी गल्ती भी क्या बेचारे बिना टूल के करते भी क्या यह तो रोड़वेज डिपार्टमेन्ट झुन्झुनूं की मेहरबानी है कि रूट 200-250 के लगभग लम्बा और स्टेपनी और टूल बस के साथ नहीं भेजते या भूल जाते है यह तो वे ही जाने फिर क्या था चालक महोदय ने दुसरे आने जाने वाले वाहनों के चालको को रूकवाने  और उनसे टायर खोलने  के टूल रॉड आदि मांगने की कोशिश शुरू कर दी लगभग आधा घंटे बाद एक ट्रक वाले ने अपना टूल रॉड वगैर रोड़वेज  डिपार्टमेन्ट के चालक को दी और तब जाकर टायर खुल पाया। परिचालक से पुछा कि आगे अब क्या होगा तो पता चला की उसी टायर को पेंचर लगवायेंगे और फिर दिल्ली जायेगे लगभग 2-3 घंटे तो लग ही जायेगें। तब सवारिया दुसरी बसो में एडजेस्ट हो कर चली गई थी। और हम भी एक पिदे से आई राजस्थान रोड़वेज बस की छत पर बैठ कर अपना सफर तय कर पाये। तब हमें आश्चर्य हुआ कि रोड़वेज डिपार्टमेंन्ट कितना भुलक्कड या लापरवाह है। इतने लम्बे सफर की बस में स्टेपनी और टूल नसीब नहीं? इसे आप अपनी राय में क्या कहेंगे भूल? या लापरवाही ? ये तो आप ही जाने ? 

भगवान की प्रतिज्ञा

भगवान  की प्रतिज्ञा

दोस्तो लोग जो भगवान की भक्ति में विश्वास रखते है उनके लिए भगवान की प्रतिज्ञा, दोस्तो अगर हम कर्म के साथ भगवान में विश्वास रखते है सच्चे मन से भगवान को याद करते है भक्ति करते है तो जरूरत पड़ने व मुसीबत के समय भगवान हमारी किसी भी रूप में मदद जरूर करता है। परन्तु उसके लिए भगवना की यह प्रतिज्ञा पूरी करनी जरूरी है  भगवान कहता है -

  •  मेरी ओर आकर तो देख ध्यान न दूं तो कहना।
  • मेरे मार्ग पर पग बढाकर तो देख सब मार्ग न खोलूं तो कहना।
  • मेरे लिए कुछ बनकर तो देख तेरा मूल्य न करवाऊँ तो कहना।
  • मेरे लिए कड़वे वचन सुनकर तो देख अपार कृपा न करूँ तो कहना।
  • मेरे लिए खर्च करके तो देख भलाई के भण्डार न खोलूँ तो कहना।
  • मेरे लिए लोगों को बोल के तो देख मूल्यवान न बनाऊँ तो कहना।
  • मेरी सृष्टि में मनन करके तो देख ज्ञान के मोती न भरूँ तो कहना।
  • मुझे अपना सरजन हार बनाकर तो देख सब की गुलामी से न छुड़ाऊँ तो कहना।
  • मेरे लिए आँसूं बहाकर तो देख तेरे अन्दर प्यार का सागर न भरूँ तो कहना।
  • मेरे मार्ग पर चल कर तो देख तेरे मार्ग शान्ति वाले न बनाऊँ तो कहना।
  • मेरे नाम की महिमा करके तो देख अटूट कृपा न करूँ तो कहना।
  • तूं स्वयं को न्यौछावर करके तो देख तेरा नाम यादगार न बनाऊँ तो कहना।
  • तूं मेरा बनकर तो देख हर एक को तेरा न बनाऊँ तो कहना
                                ----

Saturday, May 8, 2010

तूं के बणणो चावै है?

हेली सतक सवाई
तूं के बणणो चावै है?

न्यारा-न्यारा चरित जगत में,झालो देर बुलावै है। सोच समझ कै बोल म्हारी हेली।
तूं के बणणों चावै है? कुब्बदगारी घणी कतरणी,
कतर-कतर टुकड़ा करदे,सुगणी सूई टुकड़ों-टुकड़ों
जोड़-जोड़ सिलकै धरदे
ऐक करै दौ फाड़ हमेसाँ,दूजी मैळ मिलावै है।
सोच समझ कै बोल म्हारी हेली।तूं के बणणों चावै है?
सदॉ बिखेरे नाज दळती,चलती चक्की बोछरड़ी
चूल सामवै चून समूचै,माड्यां छाती पड़ी-पड़ी
इक दुतकारै दूर भगावै, दूजी हिए लगावै है।
सोच समझ कै बोल म्हारी हेली। तूं के बणणों चावै है?
लौह् लकड़ी स्यूं बणिया दोनूँ, इक बंदूखर इक हळिया
दोन्याँ नै हीं हरख मानखो हॉड रयो कांधै धरिया
एक बहावै खून चलै जद् दूजो अन निपजावै है।
सोच समझ कै बोल म्हारी हेली। तूं के बणणों चावै है?
त्रेता जुग में रामर रावण,दोनूं ही हा राणबंका
एक अमर होग्यो दूजै री, लुटगी सोनै री लंका
कह कवि ताऊ मिनख सदॉं हीं, करणी रो फळ पावै है।
सोच समझ कै बोल म्हारी हेली। तूं के बणणों चावै है?                   
                                   राजस्थानी कवि ताऊ शेखावाटी की आत्मबोध परक कविता
कठिन शब्दों के अर्थ
शब्द                          अर्थ
न्यारा -न्यारा        - अलग-अलग
झालो                    - हाथ का इशारा
कुब्बदगारी            - सरारती
सुगणी                  - अच्छे गुणों वाली
कतर - कतर        - काट काट के टुकडै करना
फाड़                      - टुकड़े
मेळ                      - मिलाना, जोड़ना
नाज                     - अनाज
दळती                   - अनाज पिसना
चूल                      - हाथ चक्की के चारो तरफ का मिट्टी से बना हिस्सा जहां चून इक्क्ठा होता है।
दुतकारे                  - दूर भगाना (धमकाना)
हिए                      - हृदय
निपजावै               - अनाज उत्पन्न करना
मानखो                 - मनुष्य, मानव
रणबंका                - रण बांकुरे, वीर
होग्यो                   - हो गया
मिनख                  - मनुष्य,मानव
बणणो                  - बनना,होना
चावै                     - चाहत,इच्छा

बगड़ एक नजर में ....

बगड़ का वह गढ़ (महल) जो नवाबो ने बनवाया था
  • आज शिक्षा की नगरी बगड़ जहां बैठकर मैं यह ब्लॉग लिख रहा हूं उस नगर के बारे में लिखना व जानना मेरे लिए एक बहुत ही गौरव की बात है।  
 बगड़ पीरामल गेट जो सन् 1928 में निर्मित हुआ
बगड़ का ऐतिहासिक उद्भव काल
 राजस्थान का एक भाग शेखावाटी के नाम से जाना जाता है। आमेर के शासक उदयकरण जी के पुत्र मोकल जी के एक पुत्र शेखा थे उन्होंने अपना अलग राज्य स्थपित किया जो उनके नाम से शखावाटी कहलाता है। उनके वंशजो ने सीकर,झुन्झुनूं,नरहड़,सिंघाना आदि क्षेत्रों पर अधिकार कर  शेखावाटी क्षेत्र का विस्तार किया। झुन्झुनूं शहर ‘इतिहास कारो के अनुसार’ 12 वीं शदी से पूर्व का माना जाता है। झुन्झुनूं  14 कि.मी दूरी पर बगड़ कस्बा बसा हुआ है।  ‘‘क्याम खां रासो’’ में लिखा है कि बगड़ में मोबत खां कायमखानी रहा था, जब क्यामखानियों से हिसार छुटा तब मोबत खां ने  झुन्झुनूं पर अधिकार कर लिया। विक्रम संवत 1503 के आसपास का समय था।
     वर्तमान बगड़  के जो अवशेष प्राप्त हुए है वे पठानों के समय के ही माने गये है। यहा की वर्तमान जातियों में गोदारा जाट सबसे प्राचीन है। जोअब जाटाबास,बगड़ में बसते है। इनका बगड़ में बसने का समय उनके ‘‘बही भाटो’’के अनुसार वि.स 1405 है। अतः वर्तमान बगड़ 15. वी शताब्दी का है। इतिहासकार
‘रघुनाथ सिंह शेखावत’ के अनुसार पुराना बगड़ वर्तमान बगउ़ से एक कि.मी.  दक्षिण पश्चिम में स्थित था। आजकल उस स्थान को ‘‘बुढ़लीभर’ कहा जाता है। बुढ़लीभर का अर्थ पुराने टीले से है  टीले पर ठिकरिया आदि अवशेष मिले है  यह टीला काफी जगह घेरे हुए है। पुरातत्व विभाग जयपुर के कला अधीक्षक श्री विजय  शंकर श्रीवास्तव ने इन अवशेषों को चैहान कालीन बताया है। चैहानों का समय 8 वीं शताब्दी से 12 वीं शताब्दी है। अतः  कहा जा सकता है कि उस समय यह बस्ती बसी हुई थी।   
    बगड़ को प्रमाणों व दन्त कथाओं के आधार पर यह निष्कर्ष निकलता है कि वि.स. 1788 में शार्दूल सिंह शेखावत ने  नागड़ पठानों से नरहड़ व बगड़ (शेखावाटी)प्राप्त किया था।  बाद में यह (शेखावाटी क्षेत्र) जब शार्दुल सिंह के पाचं पुत्रों जोरावर सिंह, किशन सिंह,अख्यसिंह,नवल सिंह,और केशरी सिंह मे बराबर-बराबर में बांटा गया  यह ‘बटाई  ‘‘पांच पानों’’ के नाम से जानी जाती है।  पांचो पानों का यह बगड़ नगर शोखावाटी के प्राचीन नगरों में  एक है। इसके बाद जोरावर सिंह के पुत्र महासिंह को बगड़ का पंाचवा हिस्सा प्राप्त हुआ ये पहले नवाबों के गढ़ में आकर रहे। आज उनके बहुत से वंशज बगड़ में ही निवास करते है। नरहड़ के तीसरे नबाब अलाउद्दीन ने पीरबाबा के डर से नरहड़ छोड़ा और बगड़ में बसा। और उसने बगड़ को अपनी राजधानी बनाया। उसके पश्चात बगड़ में हसन खां ,बावन खां और कुतुब खां नबाब हुए।
    वि.सं. 1715 के आस पास दो चमत्कारी महापुरूष इन नगर में हुए थें एक का नाम था रूपादासजी व दूसरे थे इजेतुल्लेशाह। इन दोनों में काफी दोस्ती  थी। दोनो महापुरूष हिन्दुमुस्लिम  एकता के जीते जागते प्रतीक माने गये है।
    वि.सं. 1786 तक बगड़ पर नबाबी शासन था। 275 वर्षो तक यहां  पठान नबाबो का शासन (दबदबा) रहा। बडे़ बुजुर्गो स मुह से आज भी नबाबो द्वारा 52 पालकियां निकालने की बात सनने को लिती है। इन नबाबो ने अपने काल में बहुत से कुए, मस्जिदे, इमारते बनवाये थे  आज भी उनमें से कुछेक के अवशेष मात्र देखे जा सकते है। कहा जाता है कि उनके काल में 360 लाव चला करती थी अर्थात 360 कुए चला करते थे। उनमें से बहुत से हुए अब मिट्टी में दब चुके है।  कुछ जलदाय विभाग के काम आ रहे है कुछ मं पानी नही रहा, कुछ अवशेष मात्र है।
    वि.सं. 1840 में शुर्दल सिंह के पड़पौते मालिक सिंह (महासिंह) बगड़ आये और गढ़ का निर्माण करवाया वि.सं. 2004 तक  अतार्थ सन्1947 तक करीब 164 वर्षोतक बगड़ पर शासन उनके वंशज ही करते रहे। बाद में जयपुर रियासत के विलीनीकरण के साथ ही पंचपानों के इस बगड़ नगर को भी राजस्थान में मिला लिया गया।
     बगड़ कस्बे के पश्चिम मेंबने फतेहसागर तालाब का निर्माण आज से लगभग 123 वर्ष पूर्व वि.सं. 1934 में हुआ था इसका निर्माण फतेहचन्द औझा ने करवाया था। कहा जाता है कि इसका निर्माण आधा सेर मोठांे की मजदूरी देकर करवाया गया था। और इसके साथ बना शिवालय का निर्माण भी इसी समय हुआ । यह तालाब लगभग 10 हजार फुट क्षेत्रफल का है। तथा लगभग 60 फुट गहरा है। इसमें पुरूषो,महिलाओं,पशुओं के लिए अलग अलग घाट बने हुए है। जो आज भी मौजूद है।

    वर्तमान बगड़ नगर आज पिलानी के बाद शिक्षा की दृष्टि से दूसरा स्थान रखता है। इसका धरा नाम ‘‘ छोटी काशी’’ भी माना जा सकता है।
(उपरोक्त  आंकड़े सम्बन्धी जानकारी इतिहास कार रघुनाथ सिंह  शेखावत व मुकुन्द सिंह शेखावत की पुस्तकों के आधार पर है तथा कुछ बुजुर्गो द्वारा मिली है।)


                                ---- 
 

Friday, May 7, 2010

मेरे बारे में ..

Surendra Singh Bhamboo

 नाम                       - सुरेन्द्र सिंह भाम्बू
 पिता का नाम          - श्री जीवन सिंह भाम्बू
 गांव                         - मालीगांव
 तह.                         - चिड़ावा
 जिला                       - झुन्झुनूं
 राज्य                       - राजस्थान
 देस                         - भारत
 मो.                        - 9829277798



मेरे दादा के परिवार का परिचय
मेरे दादा का नाम स्व. चौ रामनाथ सिंह भाम्बू है।
मेरे परदादा का नाम  चौ. सुबेदार पिरानाराम भाम्बू है।
पिरानाराम जी के दो लड के हुए १ का नाम रामनाथ था और 2 का शिवनारायण था।
रामनाथ के 4 लड के है।
1.    मालसिंह भाम्बू
   2.    जीवन राम भाम्बू
   3.    विजयपाल भाम्बू
4.    मूलचन्द भाम्बू
और शिवनारायण के 1 लडका है।
1    हरिसिंह भाम्बू

मेरे ताउजी (बाबोजी)  श्री मालसिंह जी कैप्टन से रिटायरमेन्ट है।
मेरे पापाजी स्व. श्री जीवण राम जी एक किसान थे।
मेरे चाचाजी श्री विजयपाल जी  राजस्थान रोड़वेज में यू.डी.सी है। रोड़वेज
मेरे चाचाजी श्री मूलचन्द जी  शिक्षा विभाग में अध्यापक है।

माल सिंह के २ लड के है।
१ सहदेव सिंह भाम्बू
२. सत्यवीर सिंह भाम्बू
3 मेरे चाचा विजयपाल सिंह के 2 बच्चे    लड़की लड़का
1  डिम्पल
2  मनजीत
4. मेरे चाचाजी मूलचन्द जी के भी दो बच्चे  लड़का व लड़की
1. रविन्द्र जो आब डॉक्टर  है। (अस्थी रोग विशेषज्ञ)
2. सरोज 

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मेरे परिवार का परचिय
मेरी मम्मी का नाम श्रीमती किताब देवी है जिनका गांव हमीरवास (बजावा ) है।
मेरे पापा का नाम स्व. श्री जीवण राम जी भाम्बू
उनके चार बच्चे है। 3 लड़कीया 1 लड़का
सुरेन्द्र सिंह भाम्बू यानि मैं हूं।
मेरा जन्म  01 जून 1980 को मेरे पैतृक गांव मालीगांव में हुआ।
मैं एक किसान परिवार से हूं। मेरे पिताजी खेती का कार्य किया करते थे।
हमारे खेत में एक कुआ है। यही पर हम रहते है।

मेरी बहिने
मेरे परिवार में हम तीन बिहने क्रमशः 1. चन्द्रकला, 2 शारदा 3. सुमन और  इकलोता एक मैं उनका भाई हूं।
मेरी बहिनों की शादी
चन्द्रकला व शारदा की
भीर्र गांव जो बुहाना तहसील में पड़ता वहा हुई है।
क्रमशः श्रीमान विरेन्द्र सिंह जी मान
श्रीमान धर्मेन्द्र सिंह जी मान
 जो मुझ से छोटी है। सुमन की शादी
नांद का बास रो चुरू रोड़ पर रिजाणी के आगे है वहां हुई है।
श्रीमान विकास जी सिहाग के साथ
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मेरी पढ़ाई के बारे में 
  • मेरी प्राथमिक पढ़ाई मेरी ही ग्राम पंचायत के एक छोटे से गांव धीरा वाली ढ़ाणी में हुई जहां
  • मैने कक्षा 1 से कक्षा 5तक शिक्षा ग्रहण की  वहां मैं आपने चाचा जी जो वहां पर मास्टर थे जाता था।
  • कक्षा 6 से कक्षा 8 तक की शिक्षा मेरे ही गांव की सरकारी स्कूल राजकीय माध्यमिक विद्यालय मालीगांव नारनोद  में प्राप्त की।
  • कक्षा 9 और 10 वीं की पढ़ाई मैनें पाड़ोस के गांव कासिमपुरा के सरकारी विद्यालय से प्राप्त की।
  • मैने 10 वीं कक्षा सन्‌ 1995 में उत्तीर्ण कर ली थी। 42 प्रतिद्गात अंको सें।
  • फिर मेरी पढ़ाई बगड  कस्बे जो हमारे गांव से 5 कि.मी. दूर पडता है वहां के एक निजी स्कूल  सेठ पिरामल सी.सै. स्कूल वहां से प्राप्त की वहां से मैने कक्षा 11 व कक्षा 12  पास की विषय (आर्ट ) हिन्दी साहित्य, राजनैतिक विज्ञान,इतिहास विषयों से पास की।
  • मैने 12 वीं कक्षा सन्‌ 1997 में पास की  इस दौरान मैने कई बार सरकारी नौकरी फोज की भर्ति के लिए कौशिश भी की लैकिन नहीं हो सका ।
  • फिर मैने मेरी पढ़ाई को जारी रखते हुए बगड  के ही एक निजी कॉलेज सैठ भगवानदास शिवभगवान पटवारी कॉलेज से बी.ए. की डिग्री हासिल की ।
  • बी.ए. मैने सन्‌ 2000 में पास की थी 49  प्रतिशत अंको के साथ ।
  • सन्‌ 2008 मैं मैने बी.एड. की परिक्षा दी उसमें पास हाने के बाद मैने राजस्थान विश्ववद्यालय से बी.एड. की डिग्री भी प्राप्त कर ली बी.एड. में मैने 72 प्रतिशत अंक  प्राप्त किये।
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मेरी विशेषकर रूचि
उस समय मुझे कम्प्यूटर के बारे में थोड़ी सी जानकारी प्राप्त हुई मेरी इच्छा कम्प्यूटर पढ ने की हुई। मैने बगड  कस्बे में खुले एक सेंटर पेस  नामक संस्थान से कम्प्यूटर का प्राथमिक ज्ञान प्राप्त किया मेरी रूची कप्म्यूटर को सिखने के लिए बढ ती गई। मैने 2001में कम्प्यूटर का डिप्लोमा लिया और कई सेंटरो पर पढ़ाना शुरू किया। मुकुन्दगढ  कानोरिया कॉलेज में भी कम्प्यूटर पढ़ाया। बाद में मैने अपनी खुद की कम्प्यूटर की दुकान खोलने का निश्चय कर लिया। और वैसे तो मैने 1998 से ही कम्प्यूटर का कार्य जैसे कार्ड छपाई आदि का कार्य शुरू कर दिया था 
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मेरा सपना मेरी कम्प्यूटर की दूकान
 सन्‌ 2001 में मैने अपनी पर्सनल दुकान शुरू कर दी। जो बगड  में बी.एल. स्कूल और बैंक ऑफ बड़ोदा  के पास थी। जिसका नाम मैने श्री नेशनल कम्प्यूटर आर्ट  डिजीटल कलर लैब रखा जो आज भी उसी नाम से चला रहा हूं। मेरी दुकान के अन्दर आज स्टूडियो का कार्य, शादी विवाह के लिए व सभी प्रकार की छपाई का कार्य तथा कम्प्यूटर रिपेयर तथा कप्म्यूटर सिखलाई का कार्य करवाता हूं।
  2004 में मैने अपनी दुकान का स्थान परिवर्तन कर लिया जो बगड  के पूर्व क्षेत्र में आज पीरामल गेट के पास स्थित है। जब मैने दुकान प्रारम्भ की तब बगड  में कम्प्यूटर द्वारा छपाई करने वाला एक मात्र मैं ही दुकानदार था बगड  के अन्दर बिजनैस के परपज से कम्प्यूटर लाने वाला पहला मै ही एक दुकान दार था।

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मेरी जिन्दगी की सबसे दुःखद दिन      
  

स्व. श्री जीवण राम जी भाम्बू (पिताजी)

       इस दौरान मेरे साथ एक दुखद घटना घटित हुई मेरे  पिताजी  श्री जीवण राम जी का असाध्य रोग कैंसर सें निधन हो  गया उनका निधन 10 जनवरी 2009 शनिवार पोष शुक्ल तिथ (चौदस) को प्रातः 4.15 बजे हुआ। वो मेरी जिन्दगी का एक सबसे दुखद दिन था।












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मेरी शादी के बारे में 
15 जून 2009 को मेरी शादी चिड़ावा तहसिल के एक गांव जखोड़ा में श्री प्रभूराम जी की सुपुत्री अन्जू कुलरिया से हो गई।

 
लक्ष्य भाम्बू बड़ा बेटा

15 अप्रेल 2010  (15  अप्रैल  2010 )को मेरे घर एक पुत्र का जन्म हुआ।

 जिसका नाम मैने लक्ष्य भाम्बू रखा है।







पियूष भाम्बबू (छोटा बेटा)





3 दिसम्बर 2018  को मेरे घर दुसरे बेटे का जन्म हुआ जिसका नाम मैने पीयूष भाम्बू रखा है।




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मेरी जिंदगी का दूसरा  दुःखद दिन

स्व. श्रीमती किताब देवी भाम्बू (मां)

8 मई 2021
 बैशाख कृष्ण पक्ष द्वादशी तिथि वार शनिवार को प्रातः 9:15 बजे ईश्वर ने मेरी माताजी श्रीमती किताब देवी का ममत्व मेरे सर से छीन लिया मैं आज बिल्कुल अनाथ हो गया, माँ की ममता मेरे सर से जा चुकी थी। ये मेरी जिंदगी का दूसरा सबसे दुःखद दिन था

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मेरी अभिरूचियां
मेरा पसदिदा  खाना - सादा खाना मुंझे पंसद है।
कैरी की सब्जी,सांगरी की सब्जी,कढ़ी भिण्डी की सब्जी मुझे बहुत पंसद है।

मेरा पंसदिदा रंग क्रीम कलर है।
मेरा पंसदिदा  साबुन लायबॉय तथा लक्स है।
मैं सदाबाहर गाने सुनना पंसद करता हूं।
दौस्ती करना मुझे बहुत अच्छा लगता है।
समाज सैवा करने में मुझे खुंशी होती है।
बच्चो से मुझे बहुत प्यार है।
मुझे पालतु पशुओं से भी प्रेम है।
मेरी रूची फुटबॉल के गेम में है।
और ज्यादातर रूचि कम्प्यूटर पर कुछ नया खोजने व करने में रहती है।


'' हमारी जिन्दगी की तो बस यही एक छोटी सी कहानी है,
कुछ रब की कुछ यारों की मेहबानी है। ''
    
                                       एस. एस. भाम्बू


मेरा पता :-
सुरेन्द्र सिंह भाम्बू  पुत्र श्री जीवण सिंह भाम्बू
ग्राम/पो. - मालीगांव तह. चिड़ावा
जिला - झुन्झुनूं (राज.)
मो. 9829277798
SURENDRA SINGH BHAMBOO S/o SHRI JIWAN SINGH BHAMBOO
VPO- MALIGAON VIA- BAGAR
TEH. CHIRAWA DIST. JHUNJHUNU (RAJ.)
MOB. 9829277798

कुण साथी

समझदार रा सगळा दुसमण पण बीं रो है गुण साथी।
जग बैरी और राम रूंसज्या बीं रो बालो कुण साथी॥
जद तक गोठ घूघरी राखी, मिंतर बारम्बार मिल्या।
काम पड्‌यो अर मुडकर देखयो,गिणती रा दो च्यार मिल्या॥
अब तूं गातो फिर गळियां में सुण साथी ओ सुण साथी।
जग बैरी और राम रूंसज्या बीं रो बालो कुण साथी॥
 भोळो ढाळो प्रीत पतंगो भुळ कर भोळी बातां में।
जठै रात हथळेवा मांगे, जा पूग्यो बां राता में॥
हुयो एक बर मेळ दीवै सूं सेस बची गुण- गुण साथी।
जग बैरी और राम रूंसज्या बीं रो बालो कुण साथी॥
खुद री लूखी लागी चोखी गण गचियां री खोसी ना।
ब|त चासणी मांय डुबो कै लोगां बीच परोसी ना॥
संच कही माइत सा मरग्या ओ ही हो अवगुण साथी।
जग बैरी और राम रूंसज्या बीं रो बालो कुण साथी॥
थारो म्हारो मिनख जमारो चकमा दे र निकळ ज्यावै।
जीयां  कोई खास भायलो मन में बड़ कर छळ ज्यावै॥
ज्यूं मोठां रो घुण है बैरी मोठां रो ही घुण साथी।
जग बैरी और राम रूंसज्या बीं रो बालो कुण साथी॥
                                                बगड़ कस्बे के जाने माने राजस्थानी कवि भागीरथ सिंह 'भाग्य' जी की कविता

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