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Saturday, May 8, 2010

तूं के बणणो चावै है?

हेली सतक सवाई
तूं के बणणो चावै है?

न्यारा-न्यारा चरित जगत में,झालो देर बुलावै है। सोच समझ कै बोल म्हारी हेली।
तूं के बणणों चावै है? कुब्बदगारी घणी कतरणी,
कतर-कतर टुकड़ा करदे,सुगणी सूई टुकड़ों-टुकड़ों
जोड़-जोड़ सिलकै धरदे
ऐक करै दौ फाड़ हमेसाँ,दूजी मैळ मिलावै है।
सोच समझ कै बोल म्हारी हेली।तूं के बणणों चावै है?
सदॉ बिखेरे नाज दळती,चलती चक्की बोछरड़ी
चूल सामवै चून समूचै,माड्यां छाती पड़ी-पड़ी
इक दुतकारै दूर भगावै, दूजी हिए लगावै है।
सोच समझ कै बोल म्हारी हेली। तूं के बणणों चावै है?
लौह् लकड़ी स्यूं बणिया दोनूँ, इक बंदूखर इक हळिया
दोन्याँ नै हीं हरख मानखो हॉड रयो कांधै धरिया
एक बहावै खून चलै जद् दूजो अन निपजावै है।
सोच समझ कै बोल म्हारी हेली। तूं के बणणों चावै है?
त्रेता जुग में रामर रावण,दोनूं ही हा राणबंका
एक अमर होग्यो दूजै री, लुटगी सोनै री लंका
कह कवि ताऊ मिनख सदॉं हीं, करणी रो फळ पावै है।
सोच समझ कै बोल म्हारी हेली। तूं के बणणों चावै है?                   
                                   राजस्थानी कवि ताऊ शेखावाटी की आत्मबोध परक कविता
कठिन शब्दों के अर्थ
शब्द                          अर्थ
न्यारा -न्यारा        - अलग-अलग
झालो                    - हाथ का इशारा
कुब्बदगारी            - सरारती
सुगणी                  - अच्छे गुणों वाली
कतर - कतर        - काट काट के टुकडै करना
फाड़                      - टुकड़े
मेळ                      - मिलाना, जोड़ना
नाज                     - अनाज
दळती                   - अनाज पिसना
चूल                      - हाथ चक्की के चारो तरफ का मिट्टी से बना हिस्सा जहां चून इक्क्ठा होता है।
दुतकारे                  - दूर भगाना (धमकाना)
हिए                      - हृदय
निपजावै               - अनाज उत्पन्न करना
मानखो                 - मनुष्य, मानव
रणबंका                - रण बांकुरे, वीर
होग्यो                   - हो गया
मिनख                  - मनुष्य,मानव
बणणो                  - बनना,होना
चावै                     - चाहत,इच्छा

3 comments:

  1. बहुत सरल भावों से युक्त कविता है। शब्दों का अर्थ बताकर रचना का मज़ा और बढ़ गया...."

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  2. बहुत अच्छी कविता, धन्यवाद

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  3. बहुत सुन्दर रचना है |हेली ,आत्मा का प्रतीकात्म नाम है |

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