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Sunday, September 26, 2010

श्राद्ध पक्ष (पितृ पक्ष में क्यों की जाती है, कौवे की मनुहार और आवभगत) ?

आजकल श्राद्ध पक्ष (पितृ पक्ष चल रहा है। ) इनमें  एक चीज देखने को मिलती है। वह हैं कौवे की मनुहार और आवभगत। मन में हर बार यह सवाल उठता है। कि आखिर इन 15 दिनों में क्यों की जाती है। इस पक्षी की इतनी आवभगत वैसे तो हम बाकि दिनों में इस पक्षी को घर के पास फटकने भी नही देते है। और कंकर मार कर भगाते है। और न ही इसकी आवाज सुनना पसंद करते है।
 
 जब यह चालाक और कपटी कौआ घर में छोटे बच्चों के हाथों से छीनकर  ले जाता है।घर के बर्तन भाडो में अपना गन्दा मुँह देता रहता है। तो लोग इसे मारने को दौड़ते है। लेकिन इन दिनों में इस पक्षी की बहुत ही आवभगत होती है। इन दिनों में लोग कौवे को अपने घर बुलाकर  बढ़िया खाना खिलाते है।और यहां तक कि उसको खिलाये बगैर घर का कोई सदस्य भोजन नहीं करता घर की छत पर चढ़कर इस पक्षी को बुलाने के लिए आवाज लगाते है। (कागौस.. कागौस . इस तरह से कुछ...)हालाकि इन दिनों में कुछ लोग गऊ पूजा करते है 
 मेरे मन में सवाल उठा कि इन 15 दिनों क्या यह कौवा बुगला भगत बन जाता है। या फिर कोई देवता ?
 साल के  बाकि 340 दिन तो इसको सिवाय गालियों और कंकर मारने के कुछ भी नहीं मिलता 

मैने लोगों से पुछा भी परन्तु कोई सन्तोष जनक जबाब नहीं मिला सिर्फ ये ही कहा जाता हैं कि पुरखे जो करते आ रहे है वही हम करते है।और कुछ कहते है। हमारे पूर्वज कौवे के रूप में हमारे द्वारा दिया गया भोजन करने आते हैं 
      यह कहां तक सत्य है ये तो मैं नहीं जानता लेकिन यह सवाल जरूर उठता हैं कि सभी के पूर्वज क्या कवै ही बनते है। सभी के पूर्वजों को मरने के बाद क्या कौवे की योनी ही मिलती है। अगर ये हमारें पूर्वज ही हैं तो हम इन्हें हर रोज प्रातः खाना क्यों नहीं देते है ? मारने क्यों दौड़ते है?  क्या करू मन तो मन हैं उसमें सवाल उठ खड़ा हुआ तो उठ खड़ा हुआ अब आप विद्वान लोगों से  विनती हैं। कृपया इसका सन्तुष्टि जनक उत्तर अगर आपके पास हो तो देवें जरूर। वैसे कोई गम्भीर समस्या भी नहीं हैं  इसमें इतना उलझने की कोई जरूरत भी नहीं श्राद्ध पक्ष में दुकान पर कोई काम तो हैं नहीं इसलिए मैने तो बैठे बैठे यह प्रश्न आपके सामने रख दिया 
अच्छा तो अब इजाजत.... 

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10 comments:

  1. कौवे की मनुहार क्यों की जाती है यह तो कोइ बड़ा ज्ञानी ध्यानी ही बता सकता है | हमें तो इतना पता है कि कौवा ही वो पक्षी है जो 400 वर्षों तक जिन्दा रह सकता है |

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  2. Kowe Ki Manuhar Isliye Ki Jati Hai
    Kyo Ki Ye Pakshiyo Me Iski Umer Sabse Badi Mani Jati Hai, Ye Sabhi Pakshiyo Me Sabse Bada Hai, Isliye Log 15 Din Iski Manuhar Karke Punye Kamate Hai

    Vikash Saini

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  3. Kowe Ki Manuhar Isliye Ki Jati Hai
    Kyo Ki Ye Pakshiyo Me Iski Umer Sabse Badi Mani Jati Hai, Ye Sabhi Pakshiyo Me Sabse Bada Hai, Isliye Log 15 Din Iski Manuhar Karke Punye Kamate Hai

    Vikash Saini
    Bangalore

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  4. Bhambhuji,
    Apni kanagat title wali post me maine is galat pratha per vistar sey likha hai.Apke ques.wazib hai-is dhong ka koi matlab nahi hai.
    Jeevit Mata-Pita,Sas-Swasur aur Guru ki sewa SHRADHAPURVAK is prakar ki jaye ki vey TRIPT ho jayen wahi shradh aur Tarpan hai jo sadaiv
    chalna chahiye.Mrit purvajon ke nam per kauwa adi ko dena apne PURVAJON ka APMAN karna hai.

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  5. @ श्रीमान विकास सैनी जी कुछ पक्षी ऐसेभी है। जिनकी उम्र कवै से भी ज्यादा होती हैं तो अगर उम्र की लिहाज से ही इसे पुजते है तो दूसरे पक्षीयों को क्यों नहीं पुजते और 15 दिन के बाद इसे 340 दिनों यानि पूरी साल कंकर मारते क्यों है। तब इसकी उम्र और पूर्वजों की लिहाज कहा चली जाती है।
    और क्या सभी के पूर्वज मरने के बाद कवै ही बनते है?
    @ श्रीमान विजय जी मेरा प्रश्न यह है कि आखिर कवै को ही क्यों मनुहार कर बुलाय जाता है।

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  6. Surendraji,
    Tipni ki antim line me likha tha kaove ko dena apne PURVAJON KA APMAN KARNA HAI.Sampurna pratha hi Galat aur DHONG per aadharit hai.

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  7. ishwar ki maya ishwar hi jane ham to yah janate hai ki duniyan me jo kuchh hai saty hai saty ke siwa kuchh nahi kaun kitana talashata hai , kaun kitana pata hai ?yah khoj ka bishay hai duniya me jo bhi bichar aate hai
    arganik bhagyoday .blogspot.com

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  8. हिन्दू पुराणों ने कौऐ को देवपुत्र माना है। यह मान्यता है कि इन्द्र के पुत्र जयंत ने ही सबसे पहले कौऐ का रूप धारण किया था।
    यह कथा त्रेता युग की है जब राम ने अवतार लिया और जयंत ने कौऐ का रूप धर कर सीता को घायल कर दिया था।
    तब राम ने तिनके से ब्रह्मास्त्र चलाकर जयंत की आंख फोड़ दी थी। जब उसने अपने किए की माफी मांगी तब राम ने उसे यह वरदान दिया की कि तुम्हें अर्पित किया गया भोजन पितरों को मिलेगा। बस तभी से श्राद्ध में कौओं को भोजन कराने की परंपरा चल पड़ी है।
    दरअसल आपने गौर किया होगा कि कौआ काना यानि एक आंख वाला होता है। मतलब उसे एक ही आंख से दिखाई देता है। यहां हिन्दू मान्यताओं में पितरों की तुलना कौऐ से की गई है।
    जिस प्रकार कौआ एक आंख से ही सभी को निष्पक्ष व सम भाव से देखता है उसी प्रकार हम यह आशा करते हैं कि हमारे पितर भी हमें समभाव से देखते हुए हम पर अपनी कृपादृष्टि बनाए रखें।
    वे हमारी बुराईयों को भी उसी तरह स्वीकार करें जिस प्रकार अच्छाईयों को स्वीकारते हैं।
    यही कारण है कि श्राद्ध पक्ष में कौऐ को ही पहले भोजन कराया जाता है।

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  9. @ नरेश जी आपकी यह तथ्यपरख बात सही हैं परन्तु फिर 340 दिन इस पक्षी को पत्थर क्यों मारते हैं ? वे इन 15 दिनों के बाद क्या पूजनिय नहीं रहते हैं?

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