आप सभी को त्योहारों के श्रीमोर त्योहार "तीज" की हार्दिक शुभकामनाएं श्रीमोर इसलिए कि गणगौर त्योहार के लगभग 4माह के बाद ये त्योहार आता है इसके बाद ही अन्य त्यौहारों का आगमन होता है इसलिए गावो में एक कहावत भी प्रचलित है
"तीज त्योहारा बावड़ी, ले डूबी गणगौर"
अर्थात गणगौर त्योहारों का अंतिम त्यौहार है इसके बाद काफी समय के बाद तीज का त्यौहार ही आता है तीज ही इन त्योहारों को लेकर वापस आती है। इसीलिए इसे त्यौहारों का श्रीमोर कहा गया है ये सावन के मस्त महीने में आती है चारो तरफ हरियाली ओर बारिश का मौसम बड़ा ही मनमोहक लगता है अब तो सब कुछ इस निगोड़े मोबाइल या मानो टेक्नोलॉजी ने भुला दिया है । पर पहले सावन माह लगते ही गावो में झूले डल जाते थे गांव की बहन बेटियां बड़े बूढ़े तक झूलते थे ओर बहन बेटियां इकट्ठी होकर तीज के गीत गाया करती थी झूले का अपना अलग ही अंदाज़ है आजकल ये झूले लुप्त हो गए है कहा गए वो दिन??किसी को पता है तो बताबो
वैसे तो आजकल सभी त्योहारों की महत्ता प्रायः घटती जा रही है।
पता नहीं इस धर्म को क्या हो गया है?
मैंने इस परम्परा को जीवित रख रखा है इसलिए हर साल बेटे लक्ष्य के लिए दो दिन के लिए ही सही पर झूला जरूर डालता हु ओर उसे झूले देता हूं ओर आपके साथ शेयर करता हु
ताकि आने वाली पीढ़ी को पता चले कि ये भी एक जमाना था और झूले का भी अपना अलग ही महत्व था
बेटे लक्ष्य को डाल कर दिया झूला ओर वो झूला झूलते हुए वीडियो और फोटो के साथ आपके सामने शेयर कर रहा हु कैसा लगे बताना जरूर
ओर इस लोकाचार के बारे में आपका क्या मानना है बताना?
काफी दिनों से ब्लॉग पर कुछ लिख नहीं पा रहा हूं कारण कि फेसबुक और व्हाटसअप ने इसको कम कर दिया हैं जो कुछ भी सामने आता है तुरंत फेसबुक पर ही डाल देते हैं ब्लॉग तक जाने का ध्यान ही नहीं रहता है।
इसके लिए क्षमां चाहुगा और कोशिश करूँगा की अब ब्लॉग पर ज्यादा से ज्यादा लिख सकूं
आज के लिए इतना ही अब इजाज़त ....
"तीज त्योहारा बावड़ी, ले डूबी गणगौर"
अर्थात गणगौर त्योहारों का अंतिम त्यौहार है इसके बाद काफी समय के बाद तीज का त्यौहार ही आता है तीज ही इन त्योहारों को लेकर वापस आती है। इसीलिए इसे त्यौहारों का श्रीमोर कहा गया है ये सावन के मस्त महीने में आती है चारो तरफ हरियाली ओर बारिश का मौसम बड़ा ही मनमोहक लगता है अब तो सब कुछ इस निगोड़े मोबाइल या मानो टेक्नोलॉजी ने भुला दिया है । पर पहले सावन माह लगते ही गावो में झूले डल जाते थे गांव की बहन बेटियां बड़े बूढ़े तक झूलते थे ओर बहन बेटियां इकट्ठी होकर तीज के गीत गाया करती थी झूले का अपना अलग ही अंदाज़ है आजकल ये झूले लुप्त हो गए है कहा गए वो दिन??किसी को पता है तो बताबो
वैसे तो आजकल सभी त्योहारों की महत्ता प्रायः घटती जा रही है।
पता नहीं इस धर्म को क्या हो गया है?
मैंने इस परम्परा को जीवित रख रखा है इसलिए हर साल बेटे लक्ष्य के लिए दो दिन के लिए ही सही पर झूला जरूर डालता हु ओर उसे झूले देता हूं ओर आपके साथ शेयर करता हु
ताकि आने वाली पीढ़ी को पता चले कि ये भी एक जमाना था और झूले का भी अपना अलग ही महत्व था
बेटे लक्ष्य को डाल कर दिया झूला ओर वो झूला झूलते हुए वीडियो और फोटो के साथ आपके सामने शेयर कर रहा हु कैसा लगे बताना जरूर
ओर इस लोकाचार के बारे में आपका क्या मानना है बताना?
काफी दिनों से ब्लॉग पर कुछ लिख नहीं पा रहा हूं कारण कि फेसबुक और व्हाटसअप ने इसको कम कर दिया हैं जो कुछ भी सामने आता है तुरंत फेसबुक पर ही डाल देते हैं ब्लॉग तक जाने का ध्यान ही नहीं रहता है।
इसके लिए क्षमां चाहुगा और कोशिश करूँगा की अब ब्लॉग पर ज्यादा से ज्यादा लिख सकूं
आज के लिए इतना ही अब इजाज़त ....
आपके पढ़ने लायक यहां भी है।
ज्ञानवर्धक जानकारी
ReplyDeletekarabük
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