सबसे पहले काफी दिनों बाद आप सभी पाठकों ब्लॉग मित्रों गुरूजनों को मेरा सादर प्रणाम
आपको बता दूं कि मैं पिछले काफी दिनों से शादीयों में व्यस्त था इसलिए कुछ नया लिख नहीं पाया और और पढ भी नहीं पाया शादीयों में इसलिए कि अपना धंधा ही ऐसा हैं स्टूडियों का भाई पेट पुजा के लिए बुकिंग लेकर जाना पड़ता है। हम फोटो ग्राफरों या यू कहें कि स्टूडियो वालों का काम ही ऐसा हैं कि हमसे शादी विवाह के किसी भी प्रकार के रश्म रिवाज छिपे नहीं हैं या यू कहे कि पूरी की पूरी शादी हमारी निगाहों के सामने से होकर गुजरती है। और एक नई बात यह कि अनजान जगह होते हुए भी हमें पहचान बनाने की कोई जरूरत ही नहीं पड्रती सिर्फ हमारा टूल केमरा ही हमारी पहचान बना देता हैं और दोनों पार्टियों के साथ बहुत ही जल्दी हमें इस प्रकार से घुल मिला देता हैं कि यह तक पता नहीं चलता कि हम कोई अंजान है। या अंजान जगह आये है।
सबसे खस बात यह कि घर के बड़े बुढ़ो सहित बहु बेटियां सभी बेझिझक हमारे साथ घुलमिल जाते है। यहा तक कि घुंघट की आड़ में रहने वाली बहुऐ भी हमारे सामने बेपर्दा होने से नहीं सकपकाती क्योकि भाई फोटो खिचाने का शोख जो रहता है।भले ही शादी के दो दीन बाद हम जाये तो वे घुघट न हटाऐ पर इस समय तो सटाक से कहे अनुसार एक्शन करती है। ये तो रही हमारे धंधे के खास हुनर की बात
अब आपको कुछ ऐसे रिवाजों के बारे में बताने जा रहा हूं जिसके बारे में खुद बुजुर्ग लोगों को भी कोई खास तथ्य नहीं पता लेकिन वे इनको निभाते जा रहें है।

सबसे पहले मैं जिक्र करता हूं एक रिवाज चाक पूजन की
महिलाए इक्ट्ठा होकर खाली नये मटके लेकर कुम्हार (एक जाती जो मटके बनाने का कार्य करती है। ) के घर पर जाती हैं और वहा पर रखे चाक (जो मटके बनाने के काम आता है।) उसका पूजन मूंग, तेल,रोली, मोली और चावल, गुड चढ़ाकर उसका पूजन करती है।और फिर वहां एक घेरा बनाकर क्षेत्रिय गीतों पर नृत्य करती हैं हालाकि आजकल आधुनीकरण की होड में नई झलक देखने को मिल जाती है कि डी.जे के गानों पर नृत्य होने लगा है। इस रिवाज के बारे में पुछे जाने पर बुजुर्ग लोग सिर्फ यही बताते हैं कि "ये रिवाज पहले से ही चला आ रहा है। इसलिए हम भी यह निभाते है।" तथ्य क्या कुछ पता नहीं अगर आप विद्वान लोग जानते हैं तो बताने की कृपा करें।
वैसे तो शादी में बहुत से रिवाज होते हैं परन्तु मैं यहा उन प्रमुख रिवाजों के बारे में बताना चाहता हूं जो कि बिना किसी तथ्य के घिसते चले आ रहें है।
दूसरा प्रमुख रिवाज देखने को मिलता है। समधी जच्चा
इसमें दुल्हे के पिताजी को जच्चा (बच्चे की मा) बनाया जाता हैं उसका पूरा श्रृंगार किया जाता हैं और गोद मेंछोटा बच्चा रखा जाता है। तथा थाली बजाई जाती है। अर्थत वहीं सिस्टम जो बच्चे के जन्म लेने पर घर में किया जाता है। यह सब शादी में करने का क्या तात्पर्य है। और वो भी दुल्हे के पिताजी के साथ मेरे तो समझ से परे की बात हैं मैं इसको आत तक नहीं समझ पाया हूं हालांकि शादियों में ऐसा देखता जरूर हूं। पता करने पर जबाब वो ही उपर वाला गोल मोल अब ये भी आप ही बतायें?
अगला रिवाज है। (बर्तन) थाली खिसकाना और इक्ट्ठा करना
अर्थात गृह प्रवेश रश्म इसमें जब दुल्हा दुल्हन को लेकर घर में प्रवेश करता हैं तो लडत्रके की मां द्वारा पर अन्दर की तरफ 7 थालीयां रखती है। और दुल्हा उन थालियों को अपनी कटार से इधर उधर खिसकाता रहता है। पिछे से दुल्हन उन थालियों को अक्ट्ठा करती रहती है। वो भी बिना टनटनाहट की आवाज के ऐसा माना जाता हैं कि अगर थाली इक्टठा करने में कोई आवाज हुई तो सास बहु की लडाई हो सकती है। इस रश्म को निभाने से लड़ाई कितनी हद तक रूकती हैं ये तो आप सब भली भांति जानते ही है। ज्यादा बताने से क्या फायदा पुछे जाने पर इसके दो तीन उत्तर आये वो हैं कि इससे अगर घर का मर्द यानी दुल्हा अगर घर की वस्तुए बिखेरता हैं तो औरत यानि दुल्हन को ऐसा होना चाहिए कि वो उसे समेट ले-
यह कि इससे दुल्हन के आज्ञाकारी होने का पता चलता है।
यह कि इससे सास बहु में हमेशा बनी रहती हैं झगड़ा नहीं होता अब आप ही बताये कि ये किस हद तक सही है।
अगला रिवाज हैं सोट सोटकी यह रिवाज बहुत ही रोचक और आश्चर्यजनक रिवाज है। कुछ समय पहले यानि गृहप्रवेश में तो झगड़ा न होने की बात की जाती हैं और उसके कुछ समय के बाद ही यह रश्म अदा की जाती है। इसमें सबसे पहले दुल्हा आपसे में नीम या जाल की सोटकी से एक दुसरे को मारते हैं और फिर दुल्हे के सांग दुल्हे की भाभीयां इसी क्रम में खेलती हैं और दुल्हन के साथ उसके देवर खेलते है। और कही कही तो दुल्हन के ननदोई यानी कि दुल्हे के जीजा जी भी दुल्हन के सांग खेलते है। कही कही तो देखा जाता हैं कि यह खेल भंयकर हो ताजा है। और एक गुस्से का रूप लेकर शरीर को चोट पहुचाने लायक बन जाता है। मजाक मजाक में ये लोग एक दुसरे को चोट पहुचा देते है। और आक्रामक रूप से खेलने लगते है। इसके पिछे क्या तथ्य हैं ये भी लोग नहीं बता पाये
अगला रिवाज हैं जुआ खेलना यह रिवाज भी विचित्र है। इसमें दुल्हा दुल्हन आपस में अपने कांगन डोरे खोलते हैं और दुल्हे की भाभी उसमें दुल्हन की मुंदड़ी (अंगूठी) मिलाकर उन दोनों को एक कोरे नये कुण्ड नुमा मिटटी के पात्र में दुध और पानी डालकर सात बार यह खेल लिखवाती है। इसमें यह देखा जाता है। हैं उस सफेद पानी में सेडाला गया डोरा और वो मुंदड़ी (अंगूठी) पहले कौन निकाल कर लाता हैं दुल्हा या दुल्हन जो ज्यादा बार लाता हैं वह जितता है। और अंत में दुल्हा दुल्हन की मुटठी को खोलकर उसमें वो अंगूठी पहना देता है। यह भी विवाह का अटपटा लगने वाला रिवाज लगता है। जिसका कोई तथ्य परक उत्तर आज तक सामने नहीं आया और भी कई ऐसे रिवाज है। जिनका कोई तथ्य नहीं निकलता है।
और मैं आपको यह बता देता हूं कि आप सभी शादी शुदा लोग इन सभी रश्मों से होकर गुजर चुके हो परन्तु शायद ही कोई इन रश्मों का तथ्य जानता हो बस करते आ रहे है। करते आ रहें है ...मुझे 8-10 साल हो गये स्टूडियों का कार्य करते हुए लेकिन इन रिवाजों के बारे में मैं आज तक सही नहीं जान पाया तो फिर ये रिवाज क्यों निभाये जा रहें यह सवाल मन में हर शादी में जरूर उठता है। लोगों से पुछ भी लेता हूं फिर सोचता हूं कि हमें क्या हमें तो मजदूरी करनी है। आज मेंने सोचा क्यों न ये सावाल आपके सामने भी खड़ा कर दूं आब आप ही सका कोई सटीक जबाब ढ़ूढ़ कर पेश करने की कृपा करें।

दुसरा हैं घेड़ी डीजे पर 8 फुट उंची छलांग लगाती हुई
लेकिन यह नाच नहीं रही है। यह डीजे की आवाज और लोगों सें भड़कर बेकाबू हो गई और दूसरी घेड़ी पर उछल कुद करने लगी इससे दो महिलाओं को भी चोट आई शुक्र इतना हैं कि उस समय तक दुल्हा इसके उपर नहीं था नहीं तो और भी दुर्घटना घट सकती थी
ये थे हमारे क्षेत्र में होने वाले शादी विवाह के विचित्र रिवाज और हमारा अंदाज
साया
आपको बता दूं कि मैं पिछले काफी दिनों से शादीयों में व्यस्त था इसलिए कुछ नया लिख नहीं पाया और और पढ भी नहीं पाया शादीयों में इसलिए कि अपना धंधा ही ऐसा हैं स्टूडियों का भाई पेट पुजा के लिए बुकिंग लेकर जाना पड़ता है। हम फोटो ग्राफरों या यू कहें कि स्टूडियो वालों का काम ही ऐसा हैं कि हमसे शादी विवाह के किसी भी प्रकार के रश्म रिवाज छिपे नहीं हैं या यू कहे कि पूरी की पूरी शादी हमारी निगाहों के सामने से होकर गुजरती है। और एक नई बात यह कि अनजान जगह होते हुए भी हमें पहचान बनाने की कोई जरूरत ही नहीं पड्रती सिर्फ हमारा टूल केमरा ही हमारी पहचान बना देता हैं और दोनों पार्टियों के साथ बहुत ही जल्दी हमें इस प्रकार से घुल मिला देता हैं कि यह तक पता नहीं चलता कि हम कोई अंजान है। या अंजान जगह आये है।
सबसे खस बात यह कि घर के बड़े बुढ़ो सहित बहु बेटियां सभी बेझिझक हमारे साथ घुलमिल जाते है। यहा तक कि घुंघट की आड़ में रहने वाली बहुऐ भी हमारे सामने बेपर्दा होने से नहीं सकपकाती क्योकि भाई फोटो खिचाने का शोख जो रहता है।भले ही शादी के दो दीन बाद हम जाये तो वे घुघट न हटाऐ पर इस समय तो सटाक से कहे अनुसार एक्शन करती है। ये तो रही हमारे धंधे के खास हुनर की बात
सबसे पहले मैं जिक्र करता हूं एक रिवाज चाक पूजन की
महिलाए इक्ट्ठा होकर खाली नये मटके लेकर कुम्हार (एक जाती जो मटके बनाने का कार्य करती है। ) के घर पर जाती हैं और वहा पर रखे चाक (जो मटके बनाने के काम आता है।) उसका पूजन मूंग, तेल,रोली, मोली और चावल, गुड चढ़ाकर उसका पूजन करती है।और फिर वहां एक घेरा बनाकर क्षेत्रिय गीतों पर नृत्य करती हैं हालाकि आजकल आधुनीकरण की होड में नई झलक देखने को मिल जाती है कि डी.जे के गानों पर नृत्य होने लगा है। इस रिवाज के बारे में पुछे जाने पर बुजुर्ग लोग सिर्फ यही बताते हैं कि "ये रिवाज पहले से ही चला आ रहा है। इसलिए हम भी यह निभाते है।" तथ्य क्या कुछ पता नहीं अगर आप विद्वान लोग जानते हैं तो बताने की कृपा करें।
दूसरा प्रमुख रिवाज देखने को मिलता है। समधी जच्चा
इसमें दुल्हे के पिताजी को जच्चा (बच्चे की मा) बनाया जाता हैं उसका पूरा श्रृंगार किया जाता हैं और गोद मेंछोटा बच्चा रखा जाता है। तथा थाली बजाई जाती है। अर्थत वहीं सिस्टम जो बच्चे के जन्म लेने पर घर में किया जाता है। यह सब शादी में करने का क्या तात्पर्य है। और वो भी दुल्हे के पिताजी के साथ मेरे तो समझ से परे की बात हैं मैं इसको आत तक नहीं समझ पाया हूं हालांकि शादियों में ऐसा देखता जरूर हूं। पता करने पर जबाब वो ही उपर वाला गोल मोल अब ये भी आप ही बतायें?
अगला रिवाज है। (बर्तन) थाली खिसकाना और इक्ट्ठा करना
अर्थात गृह प्रवेश रश्म इसमें जब दुल्हा दुल्हन को लेकर घर में प्रवेश करता हैं तो लडत्रके की मां द्वारा पर अन्दर की तरफ 7 थालीयां रखती है। और दुल्हा उन थालियों को अपनी कटार से इधर उधर खिसकाता रहता है। पिछे से दुल्हन उन थालियों को अक्ट्ठा करती रहती है। वो भी बिना टनटनाहट की आवाज के ऐसा माना जाता हैं कि अगर थाली इक्टठा करने में कोई आवाज हुई तो सास बहु की लडाई हो सकती है। इस रश्म को निभाने से लड़ाई कितनी हद तक रूकती हैं ये तो आप सब भली भांति जानते ही है। ज्यादा बताने से क्या फायदा पुछे जाने पर इसके दो तीन उत्तर आये वो हैं कि इससे अगर घर का मर्द यानी दुल्हा अगर घर की वस्तुए बिखेरता हैं तो औरत यानि दुल्हन को ऐसा होना चाहिए कि वो उसे समेट ले-
यह कि इससे दुल्हन के आज्ञाकारी होने का पता चलता है।
यह कि इससे सास बहु में हमेशा बनी रहती हैं झगड़ा नहीं होता अब आप ही बताये कि ये किस हद तक सही है।
अगला रिवाज हैं सोट सोटकी यह रिवाज बहुत ही रोचक और आश्चर्यजनक रिवाज है। कुछ समय पहले यानि गृहप्रवेश में तो झगड़ा न होने की बात की जाती हैं और उसके कुछ समय के बाद ही यह रश्म अदा की जाती है। इसमें सबसे पहले दुल्हा आपसे में नीम या जाल की सोटकी से एक दुसरे को मारते हैं और फिर दुल्हे के सांग दुल्हे की भाभीयां इसी क्रम में खेलती हैं और दुल्हन के साथ उसके देवर खेलते है। और कही कही तो दुल्हन के ननदोई यानी कि दुल्हे के जीजा जी भी दुल्हन के सांग खेलते है। कही कही तो देखा जाता हैं कि यह खेल भंयकर हो ताजा है। और एक गुस्से का रूप लेकर शरीर को चोट पहुचाने लायक बन जाता है। मजाक मजाक में ये लोग एक दुसरे को चोट पहुचा देते है। और आक्रामक रूप से खेलने लगते है। इसके पिछे क्या तथ्य हैं ये भी लोग नहीं बता पाये
अगला रिवाज हैं जुआ खेलना यह रिवाज भी विचित्र है। इसमें दुल्हा दुल्हन आपस में अपने कांगन डोरे खोलते हैं और दुल्हे की भाभी उसमें दुल्हन की मुंदड़ी (अंगूठी) मिलाकर उन दोनों को एक कोरे नये कुण्ड नुमा मिटटी के पात्र में दुध और पानी डालकर सात बार यह खेल लिखवाती है। इसमें यह देखा जाता है। हैं उस सफेद पानी में सेडाला गया डोरा और वो मुंदड़ी (अंगूठी) पहले कौन निकाल कर लाता हैं दुल्हा या दुल्हन जो ज्यादा बार लाता हैं वह जितता है। और अंत में दुल्हा दुल्हन की मुटठी को खोलकर उसमें वो अंगूठी पहना देता है। यह भी विवाह का अटपटा लगने वाला रिवाज लगता है। जिसका कोई तथ्य परक उत्तर आज तक सामने नहीं आया और भी कई ऐसे रिवाज है। जिनका कोई तथ्य नहीं निकलता है।
और मैं आपको यह बता देता हूं कि आप सभी शादी शुदा लोग इन सभी रश्मों से होकर गुजर चुके हो परन्तु शायद ही कोई इन रश्मों का तथ्य जानता हो बस करते आ रहे है। करते आ रहें है ...मुझे 8-10 साल हो गये स्टूडियों का कार्य करते हुए लेकिन इन रिवाजों के बारे में मैं आज तक सही नहीं जान पाया तो फिर ये रिवाज क्यों निभाये जा रहें यह सवाल मन में हर शादी में जरूर उठता है। लोगों से पुछ भी लेता हूं फिर सोचता हूं कि हमें क्या हमें तो मजदूरी करनी है। आज मेंने सोचा क्यों न ये सावाल आपके सामने भी खड़ा कर दूं आब आप ही सका कोई सटीक जबाब ढ़ूढ़ कर पेश करने की कृपा करें।
अब आपके सामने दो ऐसे दृश्य हैं जो जो अपने आप में मायने रखते हैं एक है गाय का दुध दोहती हुई मिहला जो अपने बेटे की शादी के कार्य को बीच में छोड़कर गाय के प्रेम में एसी रमी की तीन दिन तक स्पेशल रूप से आग्रह करके अपनी फोटो खिचाने के लिए दुबारा दुध निकालने लगी कितना प्रेम करती हैं ये अपने पालतु पशुओं को कितना मातृत्व हैं इस गाय को अपने बछड़े से ये आप फोटो को देखकर अंदाज लगा सकते है।
दुसरा हैं घेड़ी डीजे पर 8 फुट उंची छलांग लगाती हुई
लेकिन यह नाच नहीं रही है। यह डीजे की आवाज और लोगों सें भड़कर बेकाबू हो गई और दूसरी घेड़ी पर उछल कुद करने लगी इससे दो महिलाओं को भी चोट आई शुक्र इतना हैं कि उस समय तक दुल्हा इसके उपर नहीं था नहीं तो और भी दुर्घटना घट सकती थी
ये थे हमारे क्षेत्र में होने वाले शादी विवाह के विचित्र रिवाज और हमारा अंदाज
आपके पढ़ने लायक यहां भी है।
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१-ये समधी जच्चा वाला रिवाज पहली बार पता चला |
ReplyDelete२- सोट सोट्की वाला रिवाज भी अब प्रतीकात्मक ही रह गया है |
३- चाक की पूजा शायद इस औजार के प्रति के सम्मान दर्शाना हो सकता है |
४- जुआ जुई खेलना ये सिर्फ मनोरंजन के तहत होता था पर अब परम्परा सी बन गई |
ratan singh sa se puri tarah se shamat hu ..ye samdhi jaccha wala riwaj sach m pahali bar suna .....thnx
ReplyDeleteकाफी धूम धाम है यहाँ पर ...हर और नजारा ही नजारा ......बहुत बढ़िया ..जानकार मन प्रसन्न हुआ ...शुक्रिया
ReplyDeleteभाई सुरेंद्र जी ये समधी को जच्चा बनाने वाला रिवाज राजपूत समाज में नहीं होता है |अन्य जातियों में होता है | इसे करने का औचित्य ये है की समधी को पहले ही जच्चा बनने का महत्व और तकलीफ का अंदाजा हो जाता है|जिससे वो अपनी पुत्र वधु से ज्यादा स्नेह व् सम्मान कर सके |
ReplyDeleteनीम की टहनी द्वारा मारना हो सकता किसी समय में रोगाणुओं को हाटाने हेतु किया गया होगा लेकिन अब वो अन्धानुकरण करते हुए ये एक प्रथा बन गया है|
सुरेन्दर जी,
ReplyDeleteपुरानी रीति रिवाजों में कुछ न कुछ तथ्य अवश्य छुपा होता है ,यह अलग बात है कि समय के साथ उनकी मान्यताएं बदल रही हैं !
मेरे ब्लॉग पर आने के लिए शुक्रिया !
कृपया स्नेह बनाएं रखें!
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
आप की दी गयी जानकारियां बेहतरीन है और तस्वीरों ने उसमें चार चाँद लगा दिया है..यह सभी रिवाजों के पीछे कोई ना कोई नेक मकसद हुआ करता है..आज रिवाज यद् हैं लोगों को मकसद भूल गए..
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग "एक्टिवे लाइफ" पर आने के लिए दिल से धन्यवाद ...
ReplyDeleteविशेष रूप धन्यवाद
रिवाजो के विषय मेँ बहुत ही अच्छी जानकारी प्रस्तुत की है आपने । अच्छा लगा देखकर और जानकर ।
ReplyDeleteआपकी फोटोग्राफी ने मन मोह लिया है सुरेन्द्र जी। धन्यवाद।
इसी का तो नाम भारत है मेरे भाई
ReplyDeleteऔर भी ऐसे रिवाज मिलेंगे
सबको
जानने को
इसीलिए तो हिन्दी ब्लॉग जगत का आगमन
मन को जचता है सही
अविनाश मूर्ख है
दिसम्बर के आखिरी महीने में जहां गर्मी रहती है वहां सपरिवार घूमने आना चाहता हूं
ससुर को जच्चा बनाने का रिवाज मैने तो सीकर,जयपुर और झुंझनु में ही देखा है।
ReplyDeleteबाकी चाक पूजने का रिवाज मानव की सभ्यता के साथ जुड़ा है। चाक एवं इससे बनाई वस्तुओं से समाज में एक क्रांतिकारी परिवर्तन आया। कभी इस वि्षय पर विस्तार से लिखुंगा।
बाकी सोट सोटकी तो हमने भी खेली है।:)
hii..brother...i am mukesh bhamboo from maligaon now i am at indore(M.P.)..when i was see your blogspot.com i was very happy..because there i was found our cultural activity and about our crops...thats very good.........
ReplyDeleteNice blog.
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